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________________ विभाग] 101 / / श्रीमन्त्रराजरहस्यान्तर्गतार्हदादि-पञ्चपरमेष्ठिस्वरूपसंदर्भः इत्युक्त्वा हृत्कमले प्रणवं मध्यस्थमरिमेरुजिनम् / स्वर-कादिवर्णयुक्तं यो ध्यायति कुम्भकेन शशिवर्णम् // 420 // 24 // सिन्दर-सुवर्णाभं श्यामारुणवर्ण(D)भं क्रमादेषः / शान्तिः क्षेमं स्तंभं द्वेषं वश्यं तनोति जन्तूनाम् // 421 // 25 // यस्तु द्वादशसहस्रं सामान्यात्प्रणवे जपम् / कुर्यात् तस्य परं ब्रह्म स्फुटं द्वादशमासतः॥ 422 // 26 // अर्हदिम्ब द्वये सायं प्राणायामत्रयं मुनिः / षट्त्रिंशत्प्रणवाभ्यासात्कुर्याद् द्वादशकत्रयात् // 423 // 27 // इडायां पूरणं सूर्ये रेचनं कुम्भकेऽन्तरा / हृदि द्विषट्पदाम्भोजे सन्ध्याविधिरयं स्मृतः / / 424 // 28 // सूर्योपस्थानमेतत्तु तदेतदघमर्षणम् / एतदेव महासन्ध्या नैवान्यत्किश्चिदस्त्यतः // 425 // 29 // षष्टया गुर्वक्षरैर्वारः पलं षष्टया पलैर्घटी / षष्टयां गुर्वक्षराङ्कोऽयं त्रिसहस्री षट्शती // 426 // 30 // अहोरात्रघटीषष्टिगुणा लक्षयुगं तथा / सहस्रा षोडशेत्यन्तः प्रणवादजपा मुनेः / / 427 // 31 // 10 आ प्रमाणे विवेचन कर्या पछी (प्रांते कहेवार्नु के-) हृदयकमलमा स्वर अने व्यंजनोथी युक्त अने जेना मध्यमा सूरिमेरु-ऽहं रूप जिन छे एवा प्रणवनुं कुंभक वडे श्वेतवर्णनुं ध्यान करवाथी प्राणीओने शांति, सिंदूर (कुंकुम ?) वर्णनुं ध्यान करवाथी क्षेम, पीतवर्णनुं ध्यान करवाथी स्तंभन, श्यामवर्णनुं ध्यान करवाथी द्वेष अने अरुणवर्णनुं ध्यान करवाथी वश करवानां कृत्यो थाय छे // 420-421 // 24-25 // 20 . जे साधारण रीते (दररोज) 12000 प्रमाण प्रणव-ॐकारनो जाप करे छे तेने बार महिनामां परब्रह्म (सूक्ष्म परावाक् अथवा आत्मस्वरूप) स्पष्ट थाय छे // 422 // 26 // मुनिए बने संध्याकाळे बार बार संख्याथी त्रण वार-एम छत्रीश प्रणवना अभ्यासथी (पूरक, कुंभक, रेचक स्वरूप) प्राणायाम करवापूर्वक अर्हद् बिंबर्नु हृदयमां (अनाहतचक्रना) बार दलना कमलमां ध्यान करतुं / ते वखते इडा नाडीथी पूरक, सुषुम्णाथी कुंभक अने सूर्या (पिंगला) नाडीथी 25 रेचक करवा / आ विधिने ' सन्ध्याविधि' कहेवामां आवे छे // 423-424 // 27-28 // ___आ (विधि) ज (अमारु) 'सूर्योपस्थान' छे, आ ज (अमारं) 'अघमर्षण' छे अने आ ज (अमारी) 'महासन्ध्या' छ / आनाथी भिन्न बीजुं कोई सूर्योपस्थान वगेरे तात्त्विक नथी // 425 // 29 // - (पंचपरमेष्ठी स्वरूप) गुरु अक्षरो 60 वार गणाय तो एक 'पल' थाय अने 60 पलोनी एक 'घडी' थाय / आ रीते गुरु अक्षर 60 वार गणीए तो 3600 संख्या प्रमाण थाय / दिवस अने रातनी 30 घडीओथी गुणीए (3600 x 60) तो 216000 (बे लाख सोळ हजार) थाय / आ संख्याथी प्रणवनो अजपा (निरंतर) जाप करवो जोईए // 426-427 // 30-31 //
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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