________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत "ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनि ! पापात्मक्षयङ्करि ! श्रुतज्वालासहस्रप्रज्वलिते ! सरस्वति ! मत्पापं हन हन दह दह क्षा क्षी झू क्षौ क्षः क्षीरवरधवले! अमृतसंभवे ! पापभक्षिणि ! मैं व हूँ हूँ स्वाहा // " संजयन्तादियोगीन्द्रैः सिद्धचक्रमनेकधा। भुक्ति-मुक्तेर्निधानं यद्, विद्यावादात् समुद्धृतम् // 136 // तद्धयान्तु बुधा मुक्त्यै, सर्वविघ्नादिनाशनम् / तस्य प्रयोजक शास्त्रं, ज्ञात्वा गुरूपदेशतः // 137 // "सिद्धचक्रम्" // स्मर मन्त्रपदाधीशमहनामाक्षराभिधम् / 'अ'वर्ण नाभिपने त्वं, मोक्षमार्गप्रदीपकम् // 138 // 'सि'वर्ण मस्तकाम्भोजे, 'सा'कारं च मुखाम्बुजे। 'आ'कारं कण्ठकले हि, 'चो''कारं हृत्सरोरुहे // 139 / / एष मन्त्रमहाराजोईदाद्यक्षरोद्भवः। पञ्चवर्णमयोऽनेकाभीष्टदोऽनिष्टशान्तिकृत् // 140 // "असि आ उ सा॥" 15 ते विद्या आ प्रकारे छ:-"ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनि ! पापात्मक्षयकुरि ! श्रुतज्वाला सहस्रप्रज्वलिते ! सरस्वति ! मत्पापं हन हन दह दह क्षाँ क्षी V क्षौं क्षः क्षीरवरधवले ! अमृतसंभवे ! पापभक्षिणि! 4 वें हूँ हूँ स्वाहा // " . संजयन्त आदि योगीन्द्रोए विद्याप्रवाद (पूर्व) माथी भुक्ति अने मुक्तिनां निधानरूप श्री सिद्धचक्रनो अनेक प्रकारे उद्धार को छे, ते सर्व विघ्नोनो नाश करनार छे तेथी तेना प्रयोजक शास्त्रनुं ज्ञान गुरु 20 उपदेशथी जाणीने हे बुद्धिमान पुरुषो! तमे मुक्तिने माटे तेनुं ध्यान करो।। 136-137 // मंत्रपदोना अधीश श्रीमद् अर्हन्ना नामना अक्षरोनो वाचक 'अ' वर्ण छ / ते मोक्षमार्गमां दीपक समान छ / तेनुं तुं नाभिपद्ममा स्मरण करै // 138 // एज रीते मस्तक(ब्रह्मरन्ध्रना)कमलमा 'सि' वर्णनुं, मुखकमलमा 'सा' वर्णनू, कंठपद्ममां 'आ' वर्णनुं अने हृदयकमलमां 'उ' वर्णनुं तुं ध्यान कर // 139 // अरिहंत वगेरे नामना आदि अक्षरोथी उत्पन्न थयेल आ (मंत्र) मन्त्रोमां श्रेष्ठ छे / ते पंचवर्णमय छे। ते अनेक प्रकारनां इच्छितोने आपनार अने अनिष्ट वस्तुओने शान्त करनार छ // 140 // ते मंत्र आ प्रकारे छे-"असि आ उ सा॥" 25 +चो च+'उ'। १.शा.लो. 106-107 / 2. ज्ञा. श्लो. 108 /