________________ [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय "ॐ जोगे मग्गे तत्त्वे भूये भवे भविस्से अक्खे जिनपाधै स्वाहा॥ ॐ ही अर्ह नमो अरिहंताणं ही नमः॥" .. दिक्पत्राष्टकसंपूर्णे, कमले मध्यसंस्थितम् / ध्यायेदात्मानमत्यन्तं, स्फुरद्ग्रीष्मार्कभास्करम् // 125 // ॐकारार्हन्नमस्कारांश्चाष्टौ वर्णान् विचिन्तयेत् / क्रमात् पूर्वादिपत्रेषु, वगैकैकं प्रदक्षिणम् // 126 // स्वीकृत्य पूर्वदिपत्रं, पूर्वदिक्सम्मुखस्थितः। जपेदष्टाक्षरं मन्त्र, एकादशशतप्रमम् // 127 // प्रत्यहं प्रतिपत्रेषु, पूर्वादिदिक्ष्वनुक्रमात् / अष्टरात्रं स्मरेद् ध्यानी, तं मन्त्रं निर्मलाशयम् // 128 // अस्याचिन्त्यप्रभावेन, शाम्यन्ति क्रूरजन्तवः। सिंहसर्पादयः सर्वे, हरित्रस्ता गजा इव // 129 // "ॐ नमो अरिहंताणं // " 10 ते विद्या आ प्रकारे छे-"ॐ जोगे मग्गे तत्त्वे भूये भवे भविस्से अक्खे जिनपाचे स्वाहा॥ 15ॐ ही अहं नमो अरिहताणं ही नमः॥", (आठ) दिशाओना आठ पत्रोथी परिपूर्ण एवा कमलना मध्यभागमां ग्रीष्म ऋतुना अत्यंत स्फुरायमान सूर्य जेवा आत्मानुं ध्यान करें / ते (पद्म) नां पूर्व आदि दिशानां पत्रोमां, ॐकारपूर्वक अर्हन नमस्कार (ॐ नमो अरिहंताणं)ना आठ वर्गोमांना प्रत्येक वर्णनुं क्रमशः प्रदक्षिणामां चिंतन कर। पूर्व दिशामां मुख करीने बेस / पूर्व दिशाना पत्रमा आठ अक्षरना मंत्रनो अगियारसो संख्या प्रमाण 20 जाप करवो। ध्यानी पुरुषे पूर्व आदि दिशाना प्रत्येक पत्रमा अनुक्रमे एक एक दिवस एम आठ रात्रि सुधी ते निर्मल आशय(अर्थ)वाळा मंत्रनुं ध्यान करवू जोईएँ / आ (मंत्र)ना अचिन्त्य प्रभावथी, जेम सिंहथी हाथीओ भयभीत बने छे तेम सिंह, सर्प वगेरे सघळां क्रूर प्राणीओ शान्त बने छे'. // 125-129 // ते मंत्र आ प्रकारे छे-"ॐ नमो अरिहंताणं // " 25.... 1. ज्ञा. श्लो. 95 / 2. शा. श्लो. 96 / 3. शा. श्लो. 97 / ... . ४..शा. श्लो, 981 5. शा. श्लो. 99 / ..