________________ विमाग] 'तत्त्वार्थसारदीपक' महाग्रन्थस्य संदर्भ प्रणवानाहतोडूतं, वर्णत्रयमयं परम् / नासाने ध्यानिनो मन्त्रं, ध्यायन्तु शिवशर्मणे // 119 // एतेनाद्भुतमन्त्रेण, ध्यानशुद्धिः परा भवेत् / आत्यन्तिकसुखं स्वात्मजं च सिद्धगुणाष्टकम् // 120 // ततो ध्यायेन्महाबीजं स्त्री (स्त्री श्री) कारं स्वमुखोदरे / विस्फुरन्तं जिनेन्द्रोक्तं, परं मन्त्रमयं शुभम् ॥१२१॥"स्त्री" ॥(श्री) विद्यां स्वेष्टार्थसंदानकरां कल्पलतोपमाम् / श्रीवीरवदनोद्भूतां, ध्यायन्त्वचिन्त्यविक्रमाम् // 122 // इमां. विद्यां जपेद् योन, ध्यानलीनो निरन्तरम् / अणिमादिगुणान् लब्ध्वा, तरेच्छास्त्रार्णवं च सः // 123 // अस्या निरन्तराम्यासाद्, ध्यानी लभेत निश्चितम् / - त्रिकालविषयं ज्ञानं, विश्वतचप्रदीपकम् // 124 // प्रणव अने अनाहतथी उत्पन्न थयेल त्रण वर्णवाळा श्रेष्ठ मंत्रने मोक्षसुख माटे ध्यानी पुरुषो . नासिकाना अप्रभाग पर दृष्टि x राखीने ध्यान करो // 119 // 15 आ अद्भुत मंत्र वडे ध्याननी परम शुद्धि, स्वात्मामां आत्यंतिक सुख अने सिद्धना आठ गुणो प्राप्त थाय छे // 120 // ते मंत्र आ प्रकारे छ:-"ॐ अर्ह // " * ते पछी पोताना मुखनी अंदर, जिनेश्वर भगवंते उपदेशेल, विशेष प्रकारे स्फुरायमान, श्रेष्ट मंत्रमय अने शुभ एवा महाबीज स्त्री (श्री)कारनुं ध्यान करवू जोईए // 121 // पोताना इच्छित अर्थनुं दान करवामां कल्पलता समान, श्री वीर भगवंतना मुखमाथी निकळेली अने अचिन्त्य सामर्थ्यवाळी आ विद्यानुं तमे ध्यान करो / जे मनुष्य आ विद्यानो अहीं सदा ध्यानमग्न बनीने जाप करे छे, ते अणिमा वगेरे गुणो प्राप्त करे अने शास्त्ररूप समुद्रनो पार पामे / आ विद्याना निरंतर अभ्यासथी ध्यानी पुरुष निश्चयथी सघळां तत्त्वोने प्रकाशित करवा माटे दीपक समान ए, त्रणे काळना विषय, ज्ञान प्राप्त करे छे // 122-124 // 20 25 x सरखावो : "द्वादशाङ्गलपर्यन्ते नासाग्रे विमलेऽम्बरे / संविदृशोः प्रशाम्यन्त्योः प्राणस्पन्दो निरुध्यते // " -हठयोगप्रदीपिका पृ. 190 // नासाया नासिकाया अग्रेऽप्रगे भागे नासिकायां द्वादशाङ्गलपर्यन्ते वा दत्ते प्रहिते ईक्षणे येन सः नासाग्रदत्तेक्षणः।। 1. शा. श्लो. 87 / 2. शा. श्लो. 90 / 3. ज्ञा. लो. 91 / 4. मा. श्लो. 92 / 5. ना. श्लो. 93 / 30