________________ नमस्कार स्वाध्याय पूर्णेन्दुमण्डलाकारं, पुण्डरीकं मुखे स्मरन् / क्रमात् तदष्टपत्रेषु, वर्णाश्चाष्टौ पृथक् पृथक् // 112 // अंकारार्हन्नमस्कारजातांस्तत्कर्णिकोपरि।। ज्योतिर्मयमिवात्यन्तदीप्रं हीकारमूर्जितम् // 113 // व्रजन्तं तालुरन्ध्रेण, तिष्ठन्तं भ्रूलतान्तरे।। स्फुरन्तं चिन्तयाऽत्यर्थ, सवन्तममृताम्बुभिः // 114 // अनेन मन्त्रपोतेन, सर्वविद्यागमाम्बुधः। भवव्यसनपापाब्धेः प्राप्यते पारमुत्तमैः // 115 // “ॐ नमो अरहताणं // " इमेऽष्टौ वर्णाः। "हीं।" इमां विद्यां महादेवीं, ललाटे संस्थितां स्मृताम् / कल्याणकारिणीं पूतां, इवीकारजां शिवप्रदाम् // 116 // "इवी // " यदि साक्षात् त्वमुद्विमो, भवदुःखामितापतः। तदा सप्ताक्षरं मन्त्रं, अर्हन्नामोद्भवं स्मर // 117 // अनेनानादिमन्त्रेण, लभन्ते विभूषिताः। सर्वज्ञवैभवं विश्व-विजयं तद्गुणान् शिवम् // 118 // " णमो अरहंताणं // " पूर्णचंद्रमंडलाकार अष्टदल कमळनु मुखमां स्मरण करतुं / तेना आठ पत्रों पर क्रमशः 'ॐ नमो अरहंताणं' एआठ वर्णो पृथक् पृथक् चितववा। तेनी कर्णिकामां ज्योतिर्मय, अत्यंत देदीप्यमान अने प्रमावशाळी हीकारने चितववो। पछी ते हीकार मुखकमलमांथी तालुरंध्रमां जाय छे, त्यांची पसार थईने भ्रूमध्यमां 20 स्थिर थईने प्रकाशे छे अने अमृतजलने स्रवे छे, एम चिंतवबुं' // 112-114 // उत्तम पुरुषो आ मंत्ररूप नौका वडे सर्व विद्याओ अने. आगमो रूप समुद्रना तथा संसारना संकटो अने पापोरूप समुद्रना पारने पामे छे // 115 // ते मंत्र आ प्रकारे छ:-"ॐ नमो अरहंताणं // " / / ही। .. आ इवीकारविद्यारूप महादेवीनुं ललाटमां स्मरण करतुं / ते इवीकारमाथी निष्पन्न, कल्याण• 25 कारिणी, पवित्र अने शिवप्रद छे // 116 // ते विद्या आ प्रकारे छे– “इवी॥" जो तुं खरेखर संसारमा दुःखरूपी अग्निना तापथी उद्विग्न थयो होय तो अर्हन् नाममांथी उत्पन्न थयेल सप्ताक्षर मंत्रनुं स्मरण कर // 117 // आ अनादिमंत्र वडे सम्यग्दृष्टि महात्माओ सर्व पर विजय, सर्वज्ञनो वैभव, ते(सर्वज्ञ )ना गुणो 30 अने शिवने प्राप्त करे छे॥११८॥ ते मंत्र आ प्रकारे छ:-"णमो अरहंताणं // " 1. शा. लो. 64 / 2. शा. लो. 71 / 3. शा. श्लो. 81 /