________________ विभाग] 'तत्त्वार्थसारदीपक' महाप्रन्थस्य संदर्भः कृत्स्नकर्मकलकौघतमोविध्वंसभास्करम् / परं सिद्धनमस्कारजातं साक्षाच्छिवप्रदम् // 107 // पञ्चवर्णमयं मन्त्रं विश्वविघ्नोपनाशनम् / दक्षाः स्मरन्तु मोक्षाय, जपन्तु वा निरन्तरम् // 108 // "णमो सिद्धाणं // " निर्दोषस्याहतो घातिघातिनः परमेष्ठिनः / प्राप्तानन्तगुणस्य श्रीमतः परमयोगिनः // 109 // विदो जपन्तु मन्त्रेशं, विश्वक्लेशानिवार्मुचम् / मुक्ति-मुक्तिसुदातारं, त्रातारं भव्यदेहिनाम् // 110 // अनेन मन्त्रपुण्येन, त्रिजगन्नाथसंपदः। विश्वशर्माणि लभ्यन्ते, क्रमाच्छ्रीजिनभूतयः // 111 // ."ॐ नमोहते केवलिने परमयोगिने अनन्तविशुद्धपरिणामविस्फुरच्छुक्लध्यानामिनिर्दग्धकर्मबीजाय प्राप्तानन्तचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मङ्गलवरदाय अष्टादशदोषरहिताय स्वाहा // " सर्व कर्म-कलंकना समूहरूप अंधकारनो नाश करवामां सूर्य समान, श्रेष्ठ, सिद्ध-नमस्कारथी 15 उत्पन्न थयेल, साक्षात् शिवने आपनार अने सर्व विघ्नसमूहना नाशक एवा पांच वर्णवाळा मंत्र- चतुर * पुरुषो मोक्षनी प्राप्ति माटे सदा स्मरण करो अथवा तेनो जाप करो // 107-108 // . ते मंत्र आ प्रकारे छ:-"णमो सिद्धाणं // " .... घाती (चार कर्मो )नो नाश करनारा, निर्दोष, अनंत गुण(चतुष्टय)ने प्राप्त, (केवलज्ञानरूप) लक्ष्मीथी शोभता अने परमयोगी एवा श्री अरिहंत परमेष्ठिना मंत्रराजने सुज्ञ 'पुरुषो जपे। ए मंत्रराज 20 समप्रक्लेशरूप अग्मिने (शांत करवा) माटे मेघ समान, भुक्ति तेमज मुक्तिंने आपनार अने भव्य जीवोनुं रक्षण करनार छे // 109-110 // ____ आ पवित्र मंत्र वडे त्रण जगतना नाथ श्री तीर्थकर परमात्मानी संपत्तिओ अने सर्व सुखो . 'क्रमशः प्राप्त थाय छे // 111 // ते मंत्र आ प्रकारे छ:-"ॐ नमोऽर्हते केवलिने परमयोगिने अनन्तविशुद्धपरिणाम- 25 विस्फुरच्छुक्लध्यानाग्निनिर्दग्धकर्मवीजाय प्राप्तानन्तचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मङ्गलवरदाय भष्टादशदोषरहिताय स्वाहा // " , शा. श्लो. 62 / 2. ज्ञा. श्लो. 63 / ... ... ... ... ........ .