________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कंस "चत्तारि लोगुत्तमा / अरिहंता लोगुत्तमा / सिद्धा लोगुत्तमा / साहू लोगुत्तमा / केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। "चत्तारि सरणं पवज्जामि / अरिहंते सरणं पवज्जामि / सिद्धे सरणं पवज्जामि। . साहू सरणं पवज्जामि / केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि // " मुक्तेः सौधं द्रुतारोदुमिमां सोपानमालिकाम् / अर्हत्-सिद्ध-सयोगिश्रीकेवल्यक्षरसंभवाम् // 103 // आयोकारमयीं सारां, विद्यां ध्यायन्तु योगिनः। त्रयोदश (पंचदश) सुवर्णाढ्यां, गुणस्थानगुणाप्तये // 104 // "ॐ अरिहंत सिद्ध सयोगिकेवली स्वाहा // " ॐकारभूषितं मन्त्र होकाराङ्कितमुत्तमम् / अर्हन्नामोभवं दक्षाश्चिन्तयन्तु शिवाप्तये // 105 // सकलज्ञानसाम्राज्यदानदक्षं च्युतोपमम् / समस्तमन्त्ररत्नानां, चूडारत्नं सुखावहम् // 106 // "ॐ ह्री अहँ नमः॥" 15 चत्तारि लोगुत्तमा। अरिहंता लोगुत्तमा। सिद्धा लोगुत्तमा। साहू लोगुत्तमा। केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। चत्तारि सरणं पवज्जामि। अरिहंते सरणं पवज्जामि। सिद्धे सरणं पवज्जामि। साहू सरणं पवज्जामि। केवलिण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि॥" अरिहंत, सिद्ध अने सयोगी केवलीना अक्षरोथी उत्पन्न थयेली, मुक्तिरूपी महेलनुं जलदीथी 20 आरोहण करवा माटे पगथियांनी श्रेणि समान, पंदर सुंदर वर्णोथी शोभती अने जेनी आदिमां ॐकार छ तेवी सारभूत विद्यानुं योगिओ गुणस्थानकनी प्राप्ति माटे ध्यान करो' // 103-104 // ते विद्या आ प्रकारे छ:-"ॐ अरिहंत सिद्ध सयोगिकेवली स्वाहा // " ॐकारथी भूषित अने हीकारथी अंकित तेमज 'अर्हन्' नाममाथी उत्पन्न थयेला उत्तम एवा मंत्रने चतुर पुरुषो मोक्षनी प्राप्ति माटे ध्यान करो // 105 // 25 ए मंत्र सघळा ज्ञान, साम्राज्य आपवामां कुशळ, निरुपम, सुख लावनार अने समस्त मंत्ररत्नोमां चूडामणि (श्रेष्ठ) छे // 106 // ते मंत्र आ प्रकारे छे :- "ॐ ही अर्ह नमः॥" 1. शा. श्लो. 58 / 2. ज्ञा. श्लो. 60 /