________________ [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय ग्रह-व्यन्तर-शाकिन्यादयो दुष्टाश्च निर्जराः / सन्मन्त्रजपनेनाहो, कतुं नोपद्रवं क्षमाः // 77 // सतां मन्त्रमहाशक्त्या, नागा व्याघ्रा गजादयः। कीलिता इव जायन्ते, चोपसर्गा अनेकशः // 78 // दुःसाध्याः सकला रोगाः, कुष्ठ-शूलादयोऽशुभाः। क्षणाद् यान्ति क्षयं पुंसां, मन्त्रध्यानमहौषधात् // 79 // मन्त्रजाप्याम्बुभिः सिक्ताः, शाम्यन्ति वह्नयोऽखिलाः। जल-स्थलभयाः सर्वे, विलीयन्तेऽस्य शक्तितः // 8 // अनेन मन्त्रयोगेन, महापापकलकिताः। शुद्धथन्ति जन्तवः क्रूरास्त्यजन्ति क्रूरतां परे / / 81 // सप्तव्यसनसंसक्ता, अञ्जनाद्याश्च तस्कराः। प्राप्य मित्रमिमं मृत्यौ, तत्पुण्येन दिवं गताः // 82 // जिनशासनमध्येऽयं, सारो मन्त्राधिपो महान् / . उद्धारः सर्वपूर्वाणां, तत्त्वानां तत्वमुत्तमम् // 83 // किमत्र बहुभिः प्रोक्तैर्मन्त्रराजप्रसादतः। ध्यानिनां जायते मुक्तिः, का वार्ता परवस्तुषु // 84 // 10 . आ सन्मंत्रनो जाप करवाथी, खरेखर प्रहो, व्यंतरो, शाकिनीओ वगैरे अने दुष्ट देवताओ उपद्रव करवाने शक्तिमान थता नथी // 77 // आ मंत्रनी महाशक्तिथी संत पुरुषोने सर्पो, वाघो अने हाथीओ वगेरे; तेमज अनेक प्रकारना 20 उपसर्गो जाणे कीलित कर्या होय एवा बनी जाय छे // 78 // मनुष्योना दुःसाध्य एवा कोढ, शूल वगेरे सर्व अशुभ रोगो आ मंत्रना ध्यानरूप औषधथी तरतमां क्षय पामी जाय छे // 79 // समप्र प्रकारना अग्निओ आ मंत्रना जापरूप पाणीथी सिंचातां शमी जाय छे अने जल तेम ज स्थलना सघळा भयो आ मंत्रनी शक्तिथी नाश पामे छे / 80 // 25 महापापथी कलंकित थयेलां प्राणीओ आ मंत्रनो योग थवाथी शुद्ध एटले पवित्र बनी जाय छे अने क्रूर प्राणीओ पण तेमनु घातकीपणुं छोडी दे छे // 81 // साते व्यसनमां डूबेला एवा अंजन वगेरे चोरोए पण मृत्युकाले आ मंत्ररूप मित्रने पामीने तेना पुण्यथी ज स्वर्गने प्राप्त कर्यु // 82 // ___जिनशासनमां आ (मंत्र) सारभूत महान् मंत्रराज छे; समस्त पूर्वाना उद्धार स्वरूप छे अने 30 तत्त्वोमां उत्तम तत्त्व छे // 83 // अहीं बहु कहेवाथी शु? (वस्तुतः) आ मंत्रराजनी कृपाथी ध्यानी पुरुषोने मुक्ति आवी मळे छे त्यारे बीजी वस्तुओ मळे एमां आश्चर्य ज शुं छे ? // 84 //