________________ विभाग] 'तत्त्वार्थसारदीपक' महानन्थस्य संदर्भ अनेन विधिना भाले, मुखे कण्ठे हृदि स्फुटम् / नाभौ पने च संस्थाप्यं, मन्त्रं नवनवोत्तमम् // 70 // नमस्काराञ्जपेद् दक्षोऽवरोहाऽजरोहणेन च / द्वि-षट्पनेषु सर्वेऽमी, नमस्काराश्च पिण्डिताः॥७१ // विश्वकल्याणदाः सन्ति, ह्यष्टोत्तरशतप्रमाः। कृत्स्नकर्मारिसंतानं, मन्तो विश्वशुभावहाः॥७२॥ जाप्येन कमलाख्येनानेन योगी लभेत भोः। भुखानोऽप्युपवासस्य, कर्मणां निर्जरां पराम् // 73 // अपराजितमन्त्रोऽयं, विश्वमन्त्राग्रिमो महान् / निरौपम्यो जगत्ख्यातो, जगद्वन्द्यो जगद्धितः // 74 // अनेन मन्त्रवज्रेण, हता दुःकर्मपर्वताः। शतखण्डं क्रमाद् यान्ति, योगिनां मुक्तिरोधकाः / / 75 // महामन्त्रप्रभावेन, विनजालान्यनन्तशः। दुष्टारि-नृप-चौरादिजानि नश्यन्ति तत्क्षणम् // 76 // ___आ विधिए भालपनमां, मुखपद्ममां, कंठपद्ममां, हृदयकमलमां अने नाभिकमलमां नवनवी रीते 15 उत्तम (1) एवा मंत्रने स्पष्ट स्थापन करवा () // 7 // . कुशल मनुष्ये अवरोह अने आरोहपूर्वक नमस्कारनो जाप करवो। बार पद्मोमां आ बधा नमस्कारोनो समावेश थयेलो छे // 71 // एक सो ने आठ संख्या प्रमाण नमस्कारो (नो जाप) जगतनुं कल्याण करनार, समस्त कर्मरूप .. शत्रुओनी परंपरानो नाश करनार अने सर्व शुभने लावनार थाय छे // 72 // 20 आवी रीते 'कमल' जापथी आ मंत्रनो जाप करतो योगी पुरुष उपवासी न होवा छतां उपवासनुं फळ मेळवे छे; अने कर्मनी उत्तम निर्जरा करें' छे // 73 // आ 'अपराजित' मंत्र सघळा मंत्रोमां प्रथम छे, महान् छे, अनुपम छे, जगतमां प्रसिद्ध छे, जगत (ना पुरुषो) ने वंदनीय छे अने जगतनुं हित साधनारो छे // 74 // आ मंत्ररूप वज्र वडे, योगीओने मुक्तिमार्गमां रोध करनार दुष्कर्मरूप पर्वतो भेदाई जतां क्रमशः 25 सेंकडो टुकडाने पामे छे (अर्थात् कर्मोना चूरेचूरा थई जाय छे) // 75 // .... आ महामंत्रना प्रभावथी दुष्ट, शत्रु, राजा अने चोरथी उत्पन्न थयेल अनन्त प्रकारनां विघ्नोनी जाळो तत्क्षण नाश पामी जाय छे॥७६॥ ... 1. ज्ञा० श्लो० 47 /