________________ [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय अथवैषोऽनिशं ध्येयः, सर्वत्रैव शशिप्रभः / कर्मारिहानये कृत्ये, किमसत्कल्पनैः सताम् // 62 ॥ॐ॥ महापश्चगुरोर्नाम, नमस्कारसुसंभवम् / (1) महामन्त्रं जगज्ज्येष्ठमनादिसिद्धमादिमम् // 63 // ध्यायन्तु वा जपन्तूचैर्दक्षाः सर्वार्थसाधकम् / युक्त्या कमलजाप्येन, वशीकृत्य चलं मनः // 64 // मस्तकस्थे स्फुरचन्द्राभेऽजे पत्राष्टभूषिते / स्थापयेत् कर्णिकामध्येऽर्हन्तं पूर्वादिदिक्षु च // 65 // .. चतुषु पद्मपत्रेषु, सिद्धं परिमनुक्रमात् / उपाध्यायं परं साधु, विदिपत्रेषु दर्शनम् // 66 // ज्ञानं वृत्तं तपो ध्यानी, स्थापयेद् ध्यानसिद्धये / कर्णिकायां जपेद् ध्यायेद्, वाऽऽदौ मन्त्रं च्युतोपमम् // 67 // . महापश्चगुरूणां पञ्चत्रिंशदक्षरप्रमम् / उच्छ्वासैस्त्रिभिरेकाग्रचेतसा भवहानये // 68 // ततश्चतुर्दिशापत्रेषु मन्त्राँश्चतुरः स्मरेत् / क्रमाद् विदिक्षु पत्रेषु, नमस्काराँश्चतुःप्रमान् / / 69 // अथवा रोज सर्वत्र चंद्र समान प्रभावाळा ॐकार, ज कर्मशत्रुना नाश माटेना कृत्यमा ध्यान कर जोईए / सत्पुरुषोने बीजी असत् कल्पनाओनुं शुं प्रयोजन ? // ६२॥ॐ॥ नमस्कार महामंत्रमा रहेला (अरिहंत-सिद्ध-आयरिय-उवज्झाय-साहु रूप) पांच महागुरुओना 20 नामथी निष्पन्न थयेल महामंत्र के जे जगतमां श्रेष्ठ छे, अनादि-सिद्ध छे, आदिम छे अने सर्व अर्थोनो साधक छे, तेनुं दक्ष पुरुषोए कमलजाप वडे युक्तिपूर्वक चंचल मनने वश करीने जाप अथवा ध्यान कर जोईए // 63-64 // मस्तकमा रहेला (ब्रह्मरन्ध्रचक्रमां), स्फुरायमान चन्द्र जेवा, आठ पत्रोथी शोमता कमळनी कर्णिकामां वच्चे अहंत भगवंतने स्थापन करवा अने पूर्व आदि दिशाओमांना चार पत्रोमां अनुक्रमे सिद्ध 25 भगवंत, सूरि भगवंत, उपाध्याय भगवंत अने साधु भगवंतने स्थापन करवा; तेमज विदिशाओनी पांखडी ओमां अनुक्रमे दर्शन, ज्ञान, चारित्र अने तपने ध्यानी पुरुषे ध्याननी सिद्धि माटे स्थापन करवां / ते पूर्वे प्रथमतः कर्णिकामां निरुपम एवा पांच महागुरुओना पांत्रीश अक्षर प्रमाण (मंत्र)नो त्रण श्वासोच्छ्वासमां एकाग्रचित्तथी भवनी हानि माटे जाप करवो अथवा ध्यान करवू // 65-68 // ए पछी चार दिशाना पत्रोमांना चार मंत्रोनुं स्मरण करवू अने ते पछी क्रमशः विदिशाओना 30 पत्रोमा चार प्रकारना नमस्कार, चिंतन करवू (1) // 69 // 1. शा. श्लो. 40