________________ विभाग] 72 'तत्त्वार्थसारदीपक'महाग्रन्थस्य संदर्भ ॐकारं विस्फुरच्चन्द्रकलाबिन्दुमहोज्ज्वलम् / नामाग्राक्षरनिष्पन्न, पञ्चानां परमेष्ठिनाम् // 55 // धर्मार्थकाममोक्षाणां, दातारं विश्वपूजितम् / हृत्कञ्जकर्णिकासीनं, ध्यायेद् ध्यानी शिवाप्तये // 56 // अर्हन्तो ह्यशरीरावाचार्या विश्वनतक्रमाः। उपाध्यायाः गताः पारं, श्रुताब्धेर्मुनयः परे // 57 // एषां पंचनमस्कारपदानां प्रथमाक्षरैः। निष्पादितोऽयमोङ्कारो, बुधैः सर्वार्थसिद्धिदः॥५८॥ एष मन्त्रो जगत्ख्यातः, कामदः कामधेनुवत् / * ध्यानीनां कल्पशाखीव, समीहितफलप्रदः // 59 // चिन्तामणिरिवाभीष्टसिद्धिकृन्मूलमन्त्रजः। ध्यातव्योऽनिशमत्यर्थ, सर्वकार्यार्थसिद्धये // 60 // . . स्तम्भनेऽयं सुवर्णाभो, विद्वेषे कजलप्रभः / वश्यादिकरणे रक्तो, ध्येयः शुभ्रोऽथ हानये // 61 // 10 'ॐ'कार ___ 15 अथवा ध्यानी पुरुष विस्फुरायमाण चन्द्रकला अने बिन्दु वडे महोज्ज्वल अने हृदयकमलनी कर्णिकामां विराजमान एवा ॐकार- मोक्ष माटे ध्यान करे। ते ॐकार पांच परमेष्ठिओना नामना प्रथमाक्षरो (अ+अ*+आ+उ+म् +) थी निष्पन्न, विश्व वडे पूजित अने धर्म, अर्थ, काम अने मोक्षने आपनार विश्व जेमना चरणोमां नम्युं छे एवा अरिहंतो, अशरीरी-सिद्धो तथा आचार्यो, श्रुतसिंधुना 20 पारने पामेला उपाध्यायो अने श्रेष्ठ मुनिओ-ए पंचनमस्कार (नमस्कार महामंत्र)ना पदोना प्रथम अक्षरो वडे (गणधरादि) बुद्धिमान पुरुषोए सर्व प्रयोजनोनी सिद्धिने आपनार आ ॐकारने निष्पादित कर्यो छे॥ 57-58 // .. - आ मंत्र जगतमां विख्यात, कामधेनुनी जेम इच्छित वस्तुओने आपनार अने ध्यानी पुरुषोने कल्पवृक्षनी जेम समीहित-वांछित फलने आपनार छे // 59 // मूलमंत्रमाथी उत्पन्न थयेल आ ॐकार चिन्तामणिनी जेम वांछितोनी सिद्धिने करनार छे / तेथी। सर्व कार्यो अने अर्थोनी सिद्धि माटे प्रतिदिन एनुं घणुं ध्यान करवू जोईए // 60 // ___ स्तम्भनमां सुवर्णसदृश कांतिवाळो, विद्वेषमां काजळ समान प्रभावाळो, वशीकरणादिमां रक्त अने पापनाश माटे शुभ्र ॐकार ध्येय छे // 61 // 25 * अशरीरी। + मुनि / 1 ज्ञा. श्लो, 33 / 2. ज्ञा, श्लो. 37 /