________________ [54-9] कलिकालसर्वज्ञ-श्रीमद्-हेमचन्द्राचार्यरचित श्रीवीतरागस्तोत्रमङ्गलाचरणम् यः परात्मा परंज्योतिः, परमः परमेष्ठिनाम् / आदित्यवर्ण तमसः परस्तादामनन्ति यम् // 1 // सर्वे येनोदमूल्यन्त, समूलाः क्लेशपादपाः। मूर्धा यस्मै नमस्यन्ति, सुरासुरनरेश्वराः // 2 // प्रावर्तन्त यतो विद्याः, पुरुषार्थप्रसाधिकाः। यस्य ज्ञानं भवद्-भावि-भूतभावावभासकृत् // 3 // यस्मिन् विज्ञानमानन्दं, ब्रह्म चैकात्मतां गतम् / सः श्रद्धेयः स च ध्येयः, प्रपद्ये शरणं च तम् / / 4. // तेन स्यां नाथवाँस्तस्मै, स्पृहयेयं समाहितः / ततः कृतार्थो भूयासं, भवेयं तस्य किङ्करः // 5 // तत्र स्तोत्रेण कुर्या च, पवित्रां स्वां सरस्वतीम् / इदं हि भवकान्तारे, जन्मिनां जन्मनः फलम् // 6 // 10 15 . __अनुवाद जेमनो आत्मा सर्व संसारी जीवोथी श्रेष्ठ छे, जेओ केवलज्ञानमय छे, जेओ पांच परमेष्ठिओमां प्रधान छे, अने जेमने पंडितजनो अज्ञानरूप अंधकारथी पर तथा सूर्य समान प्रकाशमान (अथवा अज्ञानान्धकारने दूर करवा माटे सूर्य समान प्रकाशमान) माने छे // 1 // 20 तथा, जेओए (रागद्वेष आदि) क्लेशरूप सर्व वृक्षोने (महामोहरूप) मूलथी उखेडी नाख्या छे अने जेमने सुरेन्द्रो, असुरेन्द्रो, तथा नरेन्द्रो (चक्रवर्तिओ) पण मस्तक नमावीने नमस्कार करे छे // 2 // तथा जेमनाथी धर्मादि पुरुषार्थोने प्राप्त करावनारी चौद विद्याओ आ विश्वमा प्रवर्ती अने जेमनुं ज्ञान भूत, भविष्य अने वर्तमानकालना सर्व पदार्थोनुं प्रकाशक छे // 3 // तथा; जेमना आत्मामां विज्ञान (केवलज्ञान), आनंद (अव्याबाध सुख) अने ब्रह्म (परमपद) 25 ए त्रणे एकरूपताने पाम्या छे ते श्री अरिहंत परमात्मा (ज) श्रद्धा करवा योग्य छे, ध्यान करवा योग्य छे __ अने ते परमात्माना (ज) शरणने हुं स्वीकाएं // 4 // ते परमात्माथी (ज) हुं सनाथ छु, ते परमात्माने ज हुं अनन्यहृदयथी चाहुं छु, तेमनाथी ज हुं कृतकृत्य छु अने तेमनो ज हुँ सेवक छु // 5 // ___ ते परमात्माना गुणानुवादथी हुं मारी वाणीने पवित्र करं; कारण के आ संसाररूप अटवीमां 30 प्राणीओना जन्मनु ए (भगवत्स्तवन) ज फळ छे. // 6 //