________________ .. [53-8] कलिकालसर्वज्ञ-श्रीमद्-हेमचन्द्राचार्यरचित'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित'गतसंदर्भः [पञ्च-नमस्कार-स्तोत्रम्] (अनुष्टुप्-वृत्तम्) ऋषभादीस्तीर्थकरान्, नमस्याम्यखिलानपि / भरतैरावत-विदेहाईतोऽपि नमाम्यहम् // 1 // तीर्थकद्भयो नमस्कारो, देहभानां भवच्छिदे / भवति क्रियमाणः स बोधिलाभाय चोच्चकैः // 2 // सिद्धेभ्यश्च नमस्कार, भगवद्भयः करोम्यहम् / . . कौघोऽदाहि यैानाऽग्निना भव-सहस्रजः // 3 // आचार्येभ्यः पञ्चविधाऽऽचारेभ्यश्च नमो नमः / यैर्धार्यते प्रवचनं, भवच्छेदे सदोद्यतैः // 4 // . श्रुतं बिभ्रति ये सर्व, शिष्येभ्यो व्याहरन्ति च / नमस्तेभ्यो महात्मम्य,--उपाध्यायेभ्य उच्चकैः // 5 // ___10 ___ अनुवाद ऋषभदेव वगेरे सर्व तीर्थंकरोने हुं नमन करुं छं। भरत, ऐरवत अने महाविदेह क्षेत्रमा रहेला 'अर्हतो' (तीर्थंकरो) ने पण हुं नमुं छु // 1 // 'तीर्थंकरो'ने करातो नमस्कार प्राणीओना संसार (रूपी बंधन ) ने कापनारो थाय छे अने 20 सम्यक्त्वनी प्राप्ति करावनारो थाय छे // 2 // जेओए ध्यान-अग्निवडे हजारो भवमा उत्पन्न थयेल कर्मसमूहने बाळी नाख्यो छे, ते 'सिद्ध भगवंतो'ने हुं नमस्कार करुं छु // 3 // ___ भव (रूपी बंधन) ने छेदवामां सदा उद्यमशील एवा जेओ प्रवचनने धारण करे छे, ते पांच प्रकारना आचारवाळा 'आचार्यो' ने वारंवार नमस्कार हो // 4 // 28 जेओ समस्त श्रुतने धारण करे छे अने शिष्योने (तनो) उपदेश आपे छे, एवा ते 'उपाध्याय भगवंतो'ने वारंवार नमस्कार हो॥५॥