________________ विभाग]] ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् ॲष्टमासान् स्मरेत् प्रात:जमेतच्छताधिकम् (108) / स पश्येदार्हतं बिम्ब, सप्तान्तर्भवसिद्धये // 30 // सम्यग्दृशे विनीताय, ब्रह्मव्रतभृते इदम् / देयं मिथ्यादृशे नैव "जै(जि)नाज्ञाभङ्गदूषणः(णम् ) // 31 // परमेष्ठिपदानां तु, विशेषः पूर्वयन्त्रतः / ज्ञेयो रत्नत्रयस्याथ, विशेषः कश्चिदुच्यते // 32 // अनुवाद:-जे आठ मास सुधी सवारमा 108 वार आ बीजनुं स्मरण करे छे तेने अर्हत् बिम्बनां दर्शन थाय छे अने ते तेनी सात भवनी अंदर सिद्धिने माटे थाय छे // 30 // अनुवादः-आ सम्यग्दृष्टि, विनीत अने ब्रह्मचर्यव्रतने धारण करनारने आपq / मिथ्यादृष्टिने न ज आपq / तेने आपवाथी श्री जिनेश्वरभगवंतनी आज्ञाना भंगरूप दूषण लागे छे // 31 // 10 . अनुवादः-पंचपरमेष्ठिपदोनी जे विशेषता छे ते पूर्वयन्त्रथी (परमेष्ठियंत्रथी के जे पूर्वे प्रन्थकारे रचेल छे तेथी ) जाणवी / रत्नत्रयनी जे विशेषता छे ते हवे कांईक कहेवाय छे // 32 // 77. अष्टमासान्–दृढीकरण माटे समयनो उल्लेख बाकी रह्यो हतो तेनो निर्देश अहीं थाय छ। समय-आठ मास / जे क्रिया करी छे तेना दृढीकरण माटे अहीं समयनो निर्णय कह्यो छे / आठ मास सुधी हंमेश सवारे 108 वार हीकार बीजनुं भावपूर्वक स्मरण करे तो अर्हद् बिंबन दर्शन थाय15 छे अने सात भवमां सिद्धि प्राप्त थाय छ। ... 78. जै(जि)नाज्ञाभङ्गदूषणः(णम्) आज्ञानो निर्देश के अने आ आज्ञानु उल्लंघन करे तेने जिनाज्ञा-उल्लंघननो दोष लागे छ। ७९परमेष्ठिपदानां....कश्चिदुच्यते--जाप्य मूलमन्त्रना त्रण खंड थई शके अने ते नीचे प्रमाणे : 1. प्रथम खंड-अष्ट बीजाक्षरो-उँ हाँ ही हूँ हूँ है हो हूः। 2. द्वितीय खंड-परमेष्ठिपदो अथवा ते पदोना आद्याक्षरो-अ सि आ उ सा / 3. तृतीय खंड-ज्ञानदर्शनचारित्रेभ्यो नमः / प्रथम खंडना जाप, समय तथा फल विशे श्लोक नं. 30 मां निर्देश थयो। हवे श्लोक नं. 32 मा पहेला बे पादमां परमेष्ठिपदो विशे ग्रन्थकारे जे रहस्यनो पूर्वे निर्देश कर्यो छे ते अवलोकवाने 25 सूचन कयुं अने त्रीजा तथा चोथा पादमां तृतीयखंडमां जे रत्नत्रय छे ते विशे रहस्य दर्शाववानो निर्देश कर्यो छे। आ रहस्यने श्लोक नं. 33-34-35 मां जणाववामां आव्युं छे। * सरखावो:-शतमष्टोत्तरं प्रातः ये स्मरन्ति दिने दिने / तेषां न व्याधयो देहे, प्रभवन्ति न चापदः // 94 // अष्टमासावधिं यावत्, प्रातः प्रातस्तु यः पठेत् / / स्तोत्रमेतन्महातेजो, जिनबिम्ब स पश्यति // 95 // दृष्टे सत्यस्तो बिम्बे, भवे सप्तमके ध्रुवम् / पदमाप्नोति शुद्धात्मा, परमानन्दसंपदाम् / / 96 // . सरखावो:-एतद गोप्यं महास्तोत्रं. न देयं यस्य कस्यचित / मिथ्यात्ववासिने दत्ते, बालहत्या पदे पदे // 92 // 20