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________________ प्रस्तावना . कुमारिल और धर्मकीर्ति समसामयिक थे ऐसी तिब्बती परंपरा है, किन्तु कुमारिल ने धर्मकीति का नहीं पर दिग्नाग का खण्डन किया है, जब कि धर्मकीति ने कुमारिल का खण्डन किया है। ऐसी स्थिति में कुमारिल धर्मकीर्ति के वृद्ध समकालीन ही हो सकते हैं। आचार्य धर्मकीर्ति को धर्मपालका शिष्य कहा है और धर्मपाल को वसुबन्धु का शिष्य कहा है। वसुबन्धु दो हुए हैं। प्रथम वसुबन्धु का जन्म ई० 320 और मृत्यु 380 ई० में है जबकि दूसरे वसुबन्धु का जन्म ४००ई० और मृत्यु 480 ई० में हुई-ऐसा प्रो० फ्राउवेल्नेर ने सिद्ध किया है। ये धर्मपाल प्रथम वसुबन्धु के शिष्य नहीं हो सकते क्योंकि धर्मपाल के शिष्य शीलभद्र ई० 635 में विद्यमान थे जब युएन संग नालन्दा में गए थे। आचार्य धर्मकीति ने ईश्वरसेन के पास तर्कशास्त्र का अध्ययन किया यद्यपि उनके दीक्षागुरु विद्वान् और नालन्दा के प्रसिद्ध आचार्य धर्मपाल थे। ऐसी स्थिति में यही मानना पड़ता है कि जब धर्मकीर्ति दीक्षित हए तब धर्मपाल मरणासन्न ही थे। युएन संग ने कौशाम्बी में बौद्धविहार के भग्नावशेष देखे जहाँ धर्मपाल ने वादविवाद करके तैथिकों को हराया था। ऐसी स्थिति में ह्युएन संग के भ्रमण (ई० 629-645) से कई वर्ष पहले धर्मपाल की मृत्यु हो गई थी ऐसा मानना पड़ता है। धर्मपाल के गुरु द्वितीय वसुबन्धु की मृत्यु ई० 480 में हुई तो स्वयं धर्मपाल को मृत्यु ई० 580 के पश्चात् नहीं हो सकती। इस दृष्टि से धर्मकीति के समय का विचार करें तो उनका कार्यकाल ई० 550-600 तक हो सकता है। ऐसा मानने पर दिग्नाग के शिष्य ईश्वरसेन से धर्मकीति का अध्ययन संगत नहीं। अतएव ईश्वरसेन को दिग्नाग (ई० 345-415) का साक्षात् शिष्य नहीं माना जा सकता। .. कुमारिल का खण्डन धर्मकीर्ति ने किया है। कुमारिल का समय डॉ० कुन्हन राजव ई० 550 माना है और प्रो० ब्रूनो के मत का समर्थन करके कहा है कि भर्तृहरि का समय इसमें बाधक नहीं। इत्सिगनिर्दिष्ट भर्तहरि कोई दूसरा ही होगा। अतएव कुमारिल के समय के साथ भी धर्मकीति के उक्त समय का कोई विरोध नहीं / ह्युएन संग ने धर्मकीति का उल्लेख नहीं किया इस दलील से धर्मकीर्ति के समय को 635 ई० के बाद रखना चाहिए-इस मत की समालोचना श्री राहुल जी ने वादन्याय की प्रस्तावना में की है, अतएव वह भी बाधक नहीं है। पं० श्री महेन्द्रकुमार जी ने अकलंकग्रन्यत्रय की प्रस्तावना में श्री राहुल जी की दलीलों का उत्तर देने का प्रयत्न किया है किन्तु जब भर्तहरि के समय को 600-650 के स्थान में प्रो० ब्रूनो-४५० ई० में रखते . ' तत्त्वसंग्रह-प्रस्तावना पृ० 80 / 2 अकलंकग्रन्थत्रय-प्रस्तावना पृ० 18 / On the Date of Vasubandhu-1951, p. 54-55. 4 सी. कुन्हन राज : श्लोकवार्तिकतात्पर्यटीका, प्रस्तावना पृ० 17 / 5 श्री राहुल सांकृत्यायन : वादन्याय, प्रस्तावना पृ० 5 / पं० महेन्द्रकुमारः अकलंकग्रन्थत्रय, प्रस्तावना-पृ० 21 /
SR No.004317
Book TitleDharmottar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherKashiprasad Jayswal Anushilan Samstha
Publication Year1956
Total Pages380
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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