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________________ प्रस्तावना सर्वत्र एक जैसी थी। उसमें वैदिक और बौद्ध हेतुविद्या ऐसा स्पष्ट मौलिक भेद नहीं था। उस हेतुविद्या का विकास वैदिकों ने ही नहीं किया, अपने काल में बौद्धों ने भी उसके विकास में योगदान किया। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि भारतीय हेतुविद्या की परम्परा प्राचीन काल में प्रायः एक ही थी और वही वैदिक और बौद्ध हेतुविद्या के आगामी विकास की भूमिका है। 2. * बौद्धों में हेतुविद्या का महत्त्व भगवान बुद्ध के जीवनकाल में ही बौद्धधर्म ने संघ का रूप ले लिया था। अतएव संघ की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बौद्धधर्म के अनुयायियों में उत्तरोत्तर वृद्धि करना आवश्यक था। यह वृद्धि बौद्धधर्म के प्रचार से ही हो सकती थी और प्रचार का सर्वोत्तम साधन यही समझा गया कि बौद्ध मन्तव्यों को हेतुविद्या का आश्रय लेकर स्पष्ट किया जाय / इसी कारण से बौद्धों में हेतुविद्या का महत्त्व यहाँ तक बढ़ गया कि कुछ बौद्ध पंडितों ने इस हेतुविद्या का समावेश अभिधर्म में कर दिया। किन्तु वस्तुतः हेतुविद्या यह लौकिक विद्या ही है, आध्यात्मिक विद्या नहीं है; क्योंकि हेतुविद्या का प्रयोजन वाद-विवाद में प्रतिवादी को हराना या मूढ बना देना है। वाद-विवाद में ऐसे भी प्रसंग आते हैं जब अपने शास्त्र को और शास्त्रसंमत मंतव्यों को भी कभी कभी एक ओर रख देना पड़ता है और प्रतिवादी को येन केन प्रकारेण परास्त करना ही मुख्य ध्येय हो जाता है। इसी दृष्टि को सामने रखते हुए व्याख्यायुक्ति में यह कहा गया हो कि 'हेतुवादी या ताकिक शास्त्र का अनुसरण नहीं करता' तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। किन्तु हेतुवादी को ऐसा स्वातन्त्र्य ..देने से तो 'मूले कुठाराघात' होने की संभावना होती है। यही देखकर आचार्य असंग ने स्पष्ट कहा है कि. हेतुवाद का आश्रय आगम होता है। अर्थात् आगमसंमत मन्तव्यों को ही आधारशिला मानकर हेतुवाद का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि सत्यदर्शन का मूल आप्त है, तर्क नहीं। अतएव आचार्य असंग ने अन्य विद्याओं के साथ हेतुविद्या का अध्ययन भी बोधिसत्त्व के लिए आवश्यक इसलिए बताया है कि उससे परवादी का निग्रह किया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आत्मविकास के लिए निर्वाणमार्ग का प्रतिपादन करना यह भगवान् बुद्ध का मुख्य ध्येय होने पर भी जब उनका धर्म एक संघ के रूप में हो गया तो उस मार्ग के पथिक के लिए हेतुविद्या जैसे लौकिक विषयों का अध्ययन भी आवश्यक माना जाने लगा, और अपनी एकाकी साधना को छोड़कर बुद्धशासन की रक्षा वादविवाद करके करना यह उसका आवश्यक कार्य हो गया। ' Bu-ston : History of Buddhism-Translated by Dr. E. Obermiller, Heidelberg 1931, Part I, P. 45. 2. Bu-ston : History of Buddhism Part I, P. 45. - 3 "अदृष्टसत्याश्रयो हि तर्कः कश्चिदागमनिश्रितो भवति"-महायानसूत्रालंकार 1. 12. 4 महायानसूत्रालंकार 11. 60; तुलना करो-वेदान्त सूत्र 2. 1. 11.
SR No.004317
Book TitleDharmottar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherKashiprasad Jayswal Anushilan Samstha
Publication Year1956
Total Pages380
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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