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________________ 7. धर्मोत्तरप्रदीपस्यावतरणानां सूची। 9 3, 4 1, 3 शास्त्रकार श्लोकवार्तिक संवृत्त सत्यस्वप्नवादी सांख्य 227, 233 सुगत 13 सूत्र 247 सूत्रकार 26 सौत्रान्तिकनय 35, 67, 181, स्वयूथ्य 182, 192, 212 स्वयूथ्यविचार 45 हेतुबिन्दु 44, 61, 127 56, 172 224 59, 75 सांख्यदर्शनकार 7. धर्मोत्तरप्रदीपस्यावतरणानां सूची / अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः (महाभा० उपर्युपरिष्टाद् (पाणिनि 5. 3. 31) 237 वन० 30.28) 4 उपसर्गाः क्रियायोगे अथ प्रत्यक्षशब्देन (न्यायवा० पृ०४१) 42 (पाणिनि 1. 4. 59) 38 अनुमानादर्थनिश्चयो दुर्लभः कर्मधारयमत्त्व याद् बहुव्रीहिरेव लाघवेन . (मीमांसकः) 41 138, 139 अन्यथानिष्ठं (ष्ट) भवेद् (धर्मकीर्तिः) 223 कल्पना नामजात्यादियोजना अर्थः प्रयोजनं दाहादि (विनीतदेव (न्यायवा० पृ० 41) 42 शान्तभद्रौ) - 31 कर्तृकरणे कृता बहुलम् . अर्थ याच्ञायाम् . 30 (पाणिनि 2. 1. 32) 76, 110 अवश्यं पक्षनिर्देशो न, (स्वयूथ्यैः) 172 कामशोक० (प्रमाणवि०) 68 अवसितश्चाकारो विकल्पानां ग्राह्यः गतिप्रादय (धर्मोत्तरः प्रमाणवि० टी०) 72 गतिश्च (पाणिनि-१. 4. 60) 38 अवस्तुनोऽदृश्यत्वस्य सिद्धत्वात् किं गोरतद्धितलुकि (पाणिनि 5.492) 158 ___ तदनुवादेन (अन्यव्याख्या) चक्षुः पश्यति रूपाणि (अभिध० 1.42) 56 असन्निधानं योग्यदेशे सर्वथा वस्तुनोऽ- चतसृषु चैवंविधासु तत्त्वं परिसमाप्यते भावः (अन्यव्याख्या) (न्यायभा० पृ० 2) असाधारणविषयं स्वलक्षणविषयमिति चतुरार्यसत्यदर्शनवदिति (प्रमाणवि०) 67 (हेतु० टी० पु० 25) 75 चित्तचैत्ता अचरमा उत्पन्नाः समनन्तरः असामर्थ्यवैयर्थ्याभ्यां स्वलक्षणस्य (अभिध० 2. 62) . (पूर्वव्याख्यातृभिः) 52 जनिकर्तुः प्रकृतिः (पाणिनि 1. 4. 30) इष्टं विरुद्धकार्येऽपि देशकालाद्यपेक्षणम् 90, 118 (प्रमाणवा० 3.5.) 128 तत्रार्थदृष्टिविज्ञानम् इहाभ्रान्तपदं तैमिरिकादि तत्र तदाद्यमसाधारणविषयमिति (पूर्वव्याख्या) (हेतु० पृ० 53)
SR No.004317
Book TitleDharmottar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherKashiprasad Jayswal Anushilan Samstha
Publication Year1956
Total Pages380
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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