________________ 363 स्वोपज्ञवृत्तिस्थावशिष्टपद्यानानुक्रमणिका निदत्तावदत्ते. विदत्तप्रदत्ते सुदत्ता..।४।१।२।७।१॥ भ्रणा ञः कर्मसुपुण्यपाप....।४।१।११।४।२।। निश्चतुर्दुर्बहिः प्रादु...॥१।१।१६।५।१॥ भ्रष्टककलशीकण्ठौ...।।१।२।२२।१०।२।। नृजात्युतोऽयो भवतीह पङ्गः...||१।३।५।८।१॥ मङ्गलशम्बलशालकरीषा:.....||१।२।१।१।१६।। नृद्दर्शकोपव्रणदर्भमेघाः शीलीक्षि.॥४।१।९।६।३॥ मञ्जि पुञ्जि परमाग्नि..॥१।२।१०।८।४।। नृनन्दिनक्का नाटिनाधृनर्दीन्...||३।४।१४।७।१॥ मत्सी सखी कामुकतो रिरंसुः.....॥१।३।५।७।१५।। न्यङ्क च तक्रं भृगुमद्गुवक्रम्...॥४।१।३।३।१॥ मन्थमनस्तमःक्षुब्धस्वान्तध्वान्त... पचिं वचि विचिरिचिरञ्चिपृच्छतीन्.. // 3 / 4 / 11 / 1 / 10 // // 3 / 4 / 11 / 1 / 3 / / मातृपितुः ष्वसा डौ वा..॥१।२।१०।८।३।। पच्वच्वपो मृचल्लद्वदेः प्लः...॥४।१११।५।१॥ माने पणः ट्वुच्छ्यभिलूनिरुत्पुः....||४।१।३।५।२।। परोत्तरे वाऽधरचा वावपू:...॥१।२।१४।७।२॥ मालकपुस्तकमस्तकनिष्का......॥१।२।१।१।१४।। पिङ्गलाजिनसुन्दराः मयूर...।।१।२।२२।१०।३।। मुष्काकाशौ क्षेमं क्षीरं शङ्खः....॥१।२।१।१।२६।। पिञ्जिककितवादुरसा...।।१।२।२३।१।१।। मृज्ज्रश्चभ्रस्जयज्राज...।।१।२।१२।९।१।। पिण्याककल्कमधुपङ्कवितङ्क...॥१।२।१।१।२१॥ मृत्युर्घटः कण्डुविभीतको तट...।।१।२।१।१॥३७॥ पिषु शुष्कचूर्णादनु सोऽचि रूक्षा... म्लिष्टोऽस्पष्टे बलि स्थूले दृढो.... // 4 / 1 / 18 / 8 / 5 / / // 3 / 4 / 11 / 1 / 11 // पीयुक्षाप्लक्षकाान्तः..॥१।२।४।१६।२॥ यकृन्निशाऽसृज्शकृदासनानि...।।१।२।२०।४।१।। पुंस्यत्स्नुदब्धण्घणकोकिलान्तः...||१।२।१।१।२८॥ यज्यद्याञ्चः स्वप्प्रच्छिभ्याम्...॥४।१।५।८।१।। पूर्वप्रवालशतमानकबन्धतीर्थाः...॥१।२।१।१।२०।। योऽषावटाद्वायनो लोहितादे..।।१।३।५।७।१७।। प्रग्रीवपात्रीवपुसीर पिष्टौ.॥१।२।१।१।२४॥ यत्तदौ क्षिपकाविति ध्रुवका..॥१॥३।७।१।१।। प्र पराऽपानु सं चाव....॥१।१।१७।१।९।। यस्काङ्गिरोलह्यवसिष्ठष्टगोतमात्..।।१।२।२२।६।१।। प्रातरन्तः पुनः पृथग् युगपत्...।१।१।१७।१।६॥ यस्मादपायोऽवधिरत्र लाति...।।१।३।४।६।२॥ प्रावाटुस्तिषयाऽस्तुम्नां...।।१।१।१७।१८॥ युवघ्नपक्वाऽहननाचुटु...।।१।२।४।१४।१।। प्रासुं प्रतिर्गोश्च नदीरथस्या...||३।४।१५।६।२॥ यूतिर्जूतिः सातितिः ... // 4 / 1 / 5 / 4 / 1 / / फणो शतौ वृत्वतङानि राज....||३।४।६।२।२।। रहस्ये त्वथ मर्यादा...॥१।२।१७।१९।१।। भाजी च पक्वाऽऽपवनं च गौणी..॥१।३।५।७।१४॥ रं च तनोर्दलखामृतदुःख...॥१।२।१।१।२।। भाद्दिन्दुनालुप् प्रसितावबद्धो..॥१।३।४।२।१॥ रेवतीरोहिणीभे करीरी कौशातकी... भिच्छित् स्वार्थे धारा पाते..॥४।१।४।७।१।। // 1 / 3 / 5/7/11 // भिन्नार्थ आराद्रिदमर्थ आह्या...॥१।३।४।६।१॥ रौ रोऽत्र तस्करबृहस्पतिदेव वा..||३।४।१५।६।१॥ भूभ्राजचव॒वृधुरुच्यपत्रपो......||४।१।१६।६।१॥ लक्ष्माविरुद्धं तु समीक्ष्य लक्ष्य...॥४।१।११।४।३।। भे पुष्यसिद्ध्यो उद उद्ध्यभिद्यौ... . लिङ्गं स्त्रियां योनिमतां तथो...||१।२।१।१।३४।। // 4 / 1 / 17 / 5 / 6 // लिह: पचो मानमितान्नखाच्च....॥४।१।९।५।२।। भौरिकि भौलिगिगौतमसूर्याः...||१।३।५।७।८॥ लोकायतालीढभगेङ्गदाङ्गं...॥१।२।१।१।९।।