________________ 362 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् कल्माषमूलाट्ट बृहच्च सूदः...।।१।३।५।७।१८॥ जिदृक्षिविश्रीपरिभूप्रसूभ्यो...।।४।१।१२।९।१।। कसिभ्रंसिपदिवञ्चोः स्कन्वं स...||३।४।६।१८।१॥ शीश्लिषस्थाऽऽस्वसो जत्रुहे...||४।१।१७।१।१।। कस्स्क: कांस्कान् भ्रातुष्पुत्रः....।।१।१।१७।८।१॥ जोश्चालशब्दार्थहलादितद्वतो...॥४।१।१२।१०।१। कान्तार तीरे शिशिरं करीरं...॥१।२।१।१।१०॥ ज्येष्ठा कनिष्ठेति च संप्रहाणा...॥१।३।५।३।२।। कारणकारकलोष्टकरोटं....॥१।२।१।१७।। टाजैर्गुणाथैः कलहोनमित्रैः...॥१।३।४।३।२।। किसलयजगच्च भुवनं....॥१।२।१।१।११।। ट्क्षीबः कृशोल्लाघश्रुतं हविः पयो... कीलकपोलगरास्तरलश्च...||१।२।१।१।३१।। // 4 / 1 / 2 / 16 / 1 // कुतपो विटपो निगडो रजतः।।१।२।१।१।२३।। र्डस्येतदादित्व उपक्रमोप..।।१।२।१।१।४।। कुहकचिबुके लिङ्ग...॥१।२।१।१।६।। ड्भावे हवाऽऽङो युधि निव्युपाचे... क्तणुकि स्वधास्मिन् यावद्यत्रौ....||१।१।१७।१।२।। // 4 / 1 / 3 / 9 / 1 // क्त्वासूह आप्ये स्मरणेऽप्यणेणे... णेर्नन्दिवाशेर्मदिदूषिसाधेः...||४।१।१२।१।१।। // 4 / 2 / 16 / 108 // तत्प्रा नारं ...||1 / 3 / 4 / 7 / 2 / / क्तेट्गुरुहल्यरडित्वषजागः....॥४।१।४।७।२॥ तथायथाभ्यामसहोत्तरे च...॥४।१।१८।८।४।। तेरग्रहस्तिङ् य च कु चुङा स्तो..... तरुणस्तलुनो देह: तमाल....||१।३।५।७।२०॥ ||3 / 4 / 11 / 1 / 7 // तव करणदी तथा स्याद्...॥१।२।४।१६।३।। कोष्टी पृथिव्यनड्वाही स्यात्...॥१।३।५।७।१०॥ ताच्छील्यहेतावनुकूलताया....।।४।१।९।६।७।। क्रौडिव्याडीक्षितिशालिरापे...।।१।३।५।१।१॥ तुमर्थभावादसतोऽस्य चाप्या...॥१।३।४।५।२।। क्लेशे च नाम्नि ग्रह आदितश्च....||४।१।१८।८।२॥ त्रपफलभजत्रोऽशसारेड्ददो...||३।४।६।२।१॥ क्षेपे न्यवां लिप्सति प्राद् वणिग्वा.... त्वरस्तृसौ प्रथो दृ च स्मृ...||३।४।६।२६।१॥ ___ // 4 / 1 / 3 / 5 / 4 // दम्भ्रस्जृधिवोऽपि भरि क्षपि श्रे... खरपयशःपणभण्डितभण्डिल...।।१।२।२२।६।२।। // 3 / 4 / 11 / 1 / 6 / / गूईखू समीवालतनु...॥१।३।५।७।१९। दादाणौ चेति दोदेङौ धाञ्धेटौ...||३।४।५।६।१।। गृमन्त्रिनेरक्षवपश्रुशा नञः...।।४।१।१२।१।२।। दाश्वाननूरानचराचरौ च...॥३।४।४।९।१॥ गौराईसूदाऽऽरटपाण्डभाङ्गा....॥१।३।५।७।६।। देशे तथाऽन्तर्घनविद्वयोभ्य:...॥४।१।३।९।२।। ग्रन्थिः पिचण्ड: कलिकुक्षिकेलि... द्वाद्यज्झलौ बाध्वृश्वियुज़स्न्व..॥३।४।११।१।१।। // 1 / 2 / 1 / 1 / 32 // धातुप्रत्ययवाच्योऽर्थस्तद्भावे...॥१।३।१।२।२।। ग्रावस्तुपृभ्राज्यलघुर्विभास...।।४।१।११।४।१॥ नखमुचकाकगृहौ स्तः...।।४।१।९।६।१।। घ्राधेदृशध्माऽपि वद्वेदिधारि...॥४।१।१२।१।३।। नञ् विद्यमानादिसहादिस्वाङ्गात्..॥१।३।५।३।३॥ ङिच्छीयते ङान्निविशानुप्रच्छा..॥४।२।१६।१०।१॥ नाधार्थतोच्चैरपि तिर्यचोऽन्तो...॥४।१।१८।८।३।। चरकचषकौ खण्डं मुण्डं....१।२१।१।१७॥ नाम्नि क्तनीलादथ चन्द्रभागाद...॥१।३।५।७।३।। चार्थे समर्थः सदृशैकशेषो....॥१।४।१।१।१। नाम्नि सर्वस्य वा प्रादेः....॥१।२।४।१६।१।। जङ्घाप्रभाबाहुनिशादिवाऽहं...॥४।१।९।६।६॥ नाम्न्यग्निब्जज्झलाषाहं...||१।२।१०।८।२।।