________________ 356 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् संवत्सरोपात्तनिमित्तयज्ञाः...।।३।१।३।४।३।। स्यात् प्रातमेकान्तमुवार्डसाद्ये...॥१।४।१।६।४।। साधार्धकालाच्छरदस्तु...।।३।१।१।१२।१।। स्यात् स्थूलमूलं शामुशीरबीजं...॥१।४।१।४।६।। सारिकुक्षश्चतुरस्रः एणी....।।१।४।५।१।३।। स्यादानुलोम्ये तु सुखप्रियाभ्यां...।।३।३।१३।७।१।। सिध्मोदके फेनहनू च मांस....1३।३।८।३।५।। स्याद्रज्जुभारः पुरुषांस...॥२।४।११।२।२।। सिन्धुरसौ सङ्कचितावसानौ...।।३।१।९।६।१॥ स्याद्रोचना प्राजरुहा मनांसि...॥१।४।२।४।५।। सुखप्रतीपो कृपणास्रसोढा....॥३।३।१०।३।१।। स्याद्धस्तिकर्तः करणं सुनामन्...॥३।१।४।७।२।। सुवस्तुकर्कन्धुमतीविकर्णाः....॥२।४।५।११।४॥ स्युर्दामनी कौष्टकिजालमानि...।।२।३।१२।७।१।। सूत्रनडोदकशुद्धौ पुष्कर....॥२।२।८।३।३॥ स्वारपालस्पयकृत स्वरश्वस्...॥२।२।६।२।१।। सूत्रं च मुण्डं लवणं च मिश्र.... स्वागतस्वध्वरस्वङ्ग्याष्टा.....॥२।२।६।२।२।। ___ // 3 / 4 / 2 / 1 / 132 // स्वाङ्गेषु सक्तौदरिकोऽलसे च...||३।३।६।७।२।। सौधः सायं प्रतिक: अष्टौ य...॥२।२।२।११।४॥ हरीतकी च षट्काण्डी...॥२।४।५।६।३।। स्तः पुरुशूरमसौ च कलिङ्गः...||२।३।१४।३।१॥ हल्यजवस्त्रीवृवृकवञ्चिन्...|२।३।१५।८।१।। स्त्रीभातृहृभिर्हदयं च दुःसो......।।३।३।५।५।४॥ हस्ती दासी कुसूलश्च गणिका...१।४।१०।७।१।। स्थिरकदुर्गयुगन्धरब्राह्मणाः....॥२।३।१७।३।३।। हिमाद्गुणात् तथा रूपो...॥३।३।१०।२।१।। स्थूलाणुमाषेषु तिलेषु कृष्णः.....।।२।३।१०।५।१॥ होतृयुवन्यजमानप्रशास्त...॥३।३।५।५।३।। स्थेणि लुङा चरणाऽपनुवादे....।।१।४।४।४।५।। हूस्वत्य्वजाद्यत्वसखार्ह...।।१।४।१।४।१॥ . स्नातकराजानौ स्तः गोजा....॥१।४।१।४।८।। .. / / 2 / 2 / 2 / 1 / 1 / / स्याच्चित्ररथवाह्लीक....॥१।४।१।४।४।। हुस्वार्द्धवाऽपि कुंसादौ....॥२।१।४।१२।२।। स्याच्छर्करा लोमकपालिके स्त:...॥२।३।११।८।१।। हस्वप्रिय