________________ 352 पञ्चग्रन्थी व्याकरणम् गच्छत्याक्रन्दमाथान्तं पदव्य..||३।२।१।३।७॥ डस्यसत्त्वे क्षिपा? न पुत्रे हरे...।।२।१।१।१।२॥' गणकारि तन्तुवाय्यो भडभिङ्गार....।।२।३।१४।६।५॥ डाचीऊरीवषडुररीवैताली...।।१।४।२।४।१॥ गर्भिणी निपुणतापसी तथा....||१।४।३।६।५॥ र्डेऽलं निवेः सर्ग उपाच्च वासः...॥३।२।१।३।३।। गर्भिण्या च चतुष्पाज्जरद्वलिन...॥१।४।३।६।७॥ तज्ञालनिद्धार्य तृ भावषष्ठी...॥१।४।३।१।१।। गवाश्वं कुब्जकैरातं पुत्र...॥१।४।४।४।१।। तण्डूलकिण्वमुलूखलमुशले...॥१।४।१।४।७।। गान्धारि शाल्वेय विवर्जितं...||२।३।१४।३।२॥ तत्प्राक्परोधं दम ऊर्ध्व...॥३।१।१।१२।२।। गृष्टिवंशावष्कयणी च धेनुः...॥१।४।३।६।६॥ तत्संशयात् कर्तृगते तुरायणं...॥३।२।१।३।१॥ गृह्णाति वर्णं च कलि हलिं त्वच्... तरस्तरू स्यादनिवे विशेष...।।२।३।१२।१।२।। // 3 / 4 / 2 / 1 / 134 / / तिकनीडयमुन्दवसूरसः वृषसु...।।२।३।१६।१।१।। गोदानमादित्यव्रतं महानान्या...||३।२।१।३।४॥ तीर्थ्य जनपदे पत्न्यां ज्योतिषि...||२।१५।३।१।। गोषमातरिश्वानौ रक्षो...॥३।३।१२।१॥३॥ तुल्यार्थचादेडिवि वेत्पदं चेत्...॥१।४।१।५।१।। गोस्रग्घविः कूपपदाक्षराणि...।।३।१।१३।८।१॥ तोकरणं च खदा च कुमारी...॥३।३।८।३।३।। ग्रन्थे सीतान्वेषणयमसभशिशु..||३।१।३।६।८।। तौल्वलि तैल्वलि धारणि रावणि..॥२।२।३।१०।१।। ग्रामखण्डादहोरूपाद् योपान्ता...||३।३।५।५।२।। त्र्यायुषय॑जुषे दारगवं...॥१।४।५।१।२।। ग्रीष्मावरसमाद् वर्णे...||३।१५।१।७|| दक्षिणापथभक्षाली आराज्ञी...|३।१।५।१।३।। घणाद्यन्तान्न तौ पाकस्नेहे...॥३।३।९।१।१॥ दण्डी सुपर्वा कुथुमी शिखण्डी...||२।२।२।११।१।। घरूपकल्पगोत्रेषु चेलड्ब्रू...।।२।१।३।६।१॥ दण्डोदकौ स्तो मुसलार्घमेधाः..।।३।२।१०।७।१॥ : घेऽत्र कालात् शये वासि वासे..॥२।१।१।१।४|| दभैंडकाशुभ्रशकन्धिशाकि...॥२।३।१४।६।२।। चक्रशीते च वियातमतिलात...॥३।३।५।१।२॥ दाम्नोष्णीषिनितान्तवृक्षपयतः...॥२।३।१४।६।४॥ चपेक्षुगोधूममसूरबिल्वाः श्यामाक...||२।४।३।७।१॥ दासीदासं कुटीकुटं मूत्र...||१।४।४।४।३।। चूडा च द्वादशाहश्च श्राद्धश्च...||३।३।४।१।१॥ दासीमाणवकं शाटीपिच्छकं...॥१।४।४।४।२।। चैङ्किपादांहती स्यातां चापडक्या...॥२।२।३।१०।३॥ दिशा आलीढशालूकगोधा...॥२।३।१४।६।१॥ छत्रं बुभुक्षा कृषि कर्म शिक्षा...||३।२।१५।३।१॥ दिष्ट्यास्ति नास्त्यस्त्यस्य मति...॥३।२।१।३।११।। छे ग्रामकन्थापलदहदान्तात् कखो...||३।१।३।६।६॥ दृढवर्णकृशोचितपण्डिता...॥३।३।५।१।१।। जटाघटापिच्छसचोऽपि कद्रः...||३।३।८।३।३॥ देवेषुकारिनडतुण्डशौण्डिशायण्ड...॥२।४।५।८।४।। जनवतकाणौ भडितः खदिर:...॥२।३।१७।४।१३॥ दैवयज्ञि आर्हिसि आतङ्कि च...॥२।२।३।१०।२।। जम्बूवत्काशकृत्स्रौ द्रुघणो...।।२।४।६।३।१३।। द्यूतेऽक्षसंख्ये परिणा शलाका..॥१।४।१।६।५।। जयन्ति दीव्यन्ति जितं खनन्ति...॥३।२।१।३।१०॥ द्विग्वर्गपूगान्तरपक्षधाय्या:...॥३।१७।४।१।। जयाश्मपादाः शकुनिश्च जाया...॥३।१।७।१।१॥ द्वेर्दण्डिमुशलिसा चैकप्रोह्या...।।१।४।१३।४।१।। जहिजोडो जहिसाम्बो पवनः...||१।४।३।६।१५॥ धर्मार्थो वा च शब्दार्थों...॥१।४।१।४।५।। जात्वादिकर्णो रथवामपूर्वः स्या...||२।३।१७।४।६॥ धूमकृशाश्ववरिश्मविशालौ...॥२।४।६।३।२४|| ज्येष्ठा कनिष्ठा सुदुरो भगादिन्...॥२।३।१४।६।१६।। धूमार्जुनायनशशादनशाष्पघोषा...।।३।१५।१।१।। टातौ फल्गुन्यषाढाभ्यां श्रविष्ठा...।।३।१।५।८।३।। धूमाहिकपिमणीनां मतौ...।।२।१।६।३।४।। र्ड: श्लेष्मवातादथ सन्निपातात्...||३।२।१।३।५॥ ध्वजचित्रनटेऽर्चाशिवे नरे...||२।३।१०।५।६।।