________________ स्वोपज्ञवृत्तिस्थगणपाठपद्यानामनुक्रमणिका 351 उरः सर्पिः- पुमान् लक्ष्मी....||१।४।१२।९।१॥ काशपलाशपीयुक्षातृणवाश...||२।४।६।३।१५।। उद्वर्तकाध्यापकपूजकाऽकाः...॥१।४।३।१।२॥ काशिः सुधामित्रहिरण्यसंवाह...॥३।१।४।७।१।। उरो मनो मध्यपदं ड्यनत्या...॥१।४।२।४।६॥ काश्यपे कुशीतको विकर्णका.... उषाखमुष्कपाण्डुभ्यो....॥३।३।१०।६।१॥ // 2 / 3 / 14 / 6 / 17 / / ऋक्पूः पथ्यप् चाध्वन् धूश्चा...।।१।४।१३।५।१॥ किन्दासवध्योषरथीतराः स्युः...||२।३।१७।४।१६।। ऋतुवायू पितृषसौ द्यावा....॥२।४।६।८।१॥ किन्नरवर्वरपर्वतकर्णाः..||३।१।९।६।२।। ऋश्योत्तराश्मन्परिगूढशर्करा....।।२।४।६।३।१६।। किसलयसूचकौ कुसुमं करु.....||३।३।१।१।२।। एकद्वित्र्यन्येभ्यो भावो राज...॥३।३।५।२।४॥ कुञ्ज विपाशः शठः शाकशुण्डे...।।२।३।१७।४।२।। एकविशेषणसर्वपुराणाः स्तश्चरम...।।१।४।३।६।१॥ कुत्स्यानि तैः पापाणके गुणोक्तौ..॥१।४।१०।८।१।। एडकिधातकिवाक्कपितक्षन् ... // 2 / 3 / 14 / 6 / 3 / / कुम्भैकका स्याद्रविनिस्सु गोणतो...||१।४।१०।८।१।। एष्विन्द्रवज्राऽप्यथ दोधकं च...||२।३।१४।६।१॥ कुलालचाण्डालनिषादसेना...||३।१।५।१८।। एष्विन्द्रवजे सनान्ये अनुष्टुप् गाथा.... कुशिकापस्तम्बभरद्वाजा...।।२।३।१७।४।१५।। // 2 // 3 / 17 / 4 / 1 // कृत्रिमे पुत्रसूत्रे तु तन्तुदानं...॥२॥३।१०।५।५।। ओरज्मतो बह्वजतोऽथ कूपेषु...||२।४।५।११।१॥ कृपणो विशपो निचयो निधनो...||१।४।३।६।९।। औक्ष्णोऽपत्येऽगगणिगाथि...॥२।२।२।११।३॥ केशब्राह्मणमाणवगाणिकाकेदार...||२।४।२।६।४।। औदभृज्ज्यौज्जहानी च राह...।।२।२।४।१।२॥ केशहिरण्य कुमाराः बिम्बकुररौ...।।३।३।९।३।१॥ कच्छनृतत्स्थतोऽपदातिसाल्वः...||३।१।५।१।५।। कोपान्तकच्छान्तरं ज्छ रङ्कुः...॥३।१।३।४।२।। कण्डूषिरे मन्तुहणी नृसुड्यमः...||३।४।९।१।१॥ कौरव्यगौकक्ष्यशिखाश्च वह्य...||२।३।१६।१।२।। कतधूर्तशकाऽवटसङ्क्त यो...||२।३।१७।४।८॥ क्तेन स्वयं सामि क्षिपेति खट्वा....॥१।४।२।६।१।। कत्स्यादतीसारपिशाचवाता...॥३।३।१०।३।३। / क्वकुत्रेहतसोऽमात्रा..||३।१।१।५।१।। कत्रि चर्मण्वतीग्रामकुड्या...||३।१।४।५।१।। क्षाप्यग्निशर्मन् मिमतेतिकाः स्युः..।।२।३।१७।३।४।। कथाविपश्चाज्जनवादवेणु...॥३।१।१।१२।५।। क्षिप्रक्षुद्रौ च दीर्घश्च हुस्वमन्दौ..॥३।३।४।९।२।। कम्पिलनासिकखण्डिकपन्थाः...॥२।४।६।३।९।। क्षीरहुदो गोफिलिका कपिलिका... कम्बोजमुण्डएहीडं स्नात्वा...॥१।४।३।६।१३।। // 2 / 3 / 14 / 5 / 4 / / कर्णे तु विश्वाद् वसुराण्नरेषु....॥२।१।६।३।२॥ क्षुद्रजन्तुरनस्थि स्यादथवा...॥१।४।४।३।४।। कर्णो वसिष्ठाकुरपाञ्चजन्या:...॥२।४।६।३।१९॥ क्षेपेऽध्वजातेः प्रतिच्छन्दनाम्नो...।।२।३।१०।५।३।। कर्दमकुमुदवयाशा: हिरण्य...॥३।३।१०।३।४॥ क्षैञ्जयतत्वजावतो (क्षेतयतः)...॥२।३।१६।१।३।। कारछागाद्दगुकोसलावृषाद्...॥२।३।१६।१।४॥ खञ्जारमञ्जीरकवर्तनाक्षा...॥२।३।१४।५।७।। कलापिमोदाविह पिप्पलादः...||२।४।११।१।१।। खट्वादुकूललेखभ्रू अनामन्तं....॥२।३।१४।६।१५।। कस्त्र्येकार्थ्यवराऽक्वि प्रित्...॥२।१।२।५।१।। खदिरक्षारवेत्राणि शूर्प...।।२।४।६।३।२२।। काणेयः शैकयतः भौरिकिविलिजि... खर्जूरभण्डितविदाः विषमः...||२।३।१७।४।१२।। // 4 / 5 / 8 / 3 / / खित्यमेकाजिचिोर्टाम्भः....॥२।१।१।११।। .कान्ताशोकानुदात्ताः स्युः...॥२।३।१४।६।१४॥ खित्यरुषो गिलेऽन्यस्यापाते....॥२।१।७।२।१।। - कामो धने हिरण्ये च...॥३।३।६।७।१॥ ख्यातम्नातौ समाडस्तु....॥१।४।३।६।१०॥