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________________ स्वरान्ता: पुल्लिङ्गाः अथ लिङ्गाद्विभक्तय उच्यन्ते सर्वज्ञं तमहं वन्दे परं ज्योतिस्तमोपहम् / प्रवृत्ता यन्मुखाद्देवी सर्वभाषा सरस्वती // 1 // ___किं लिङ्गम् ? धातुविभक्तिवर्जमर्थवल्लिङ्गम्॥१२५ // अर्थोभिधेयः // धातुविभक्तिवर्जमर्थवच्छब्दरूपं लिङ्गसंज्ञं भवति / तच्च लिङ्गं द्विविधम् / स्वरान्तं व्यञ्जनान्तं चेति। तत्पुन: प्रत्येकं त्रिविधिम्। पुल्लिङ्गं स्त्रीलिङ्गं नपुंसकलिङ्गं चेति। तत्रादावकारान्तात्पुल्लिङ्गात्पुरुषशब्दाद्विभक्तयो योज्यन्ते / लोकोपचारात्स्यादीनां विभक्तिसंज्ञायां पुरुष इति स्थिते / तस्मात्परा विभक्तयः // 126 // अथ लिंग प्रकरण अब लिंग से विभक्तियाँ कही जाती हैं। परं ज्योति-सर्वोत्कृष्ट ज्ञानस्वरूप, मोह और अज्ञानरूपी अंधकार को नष्ट करने वाले उन सर्वज्ञ भगवान् को मैं नमस्कार करता हूँ कि जिनके मुखारविंद से सर्वभाषामय सरस्वती प्रकट हुई है // 1 // भावार्थ-मोहनीय कर्म के नष्ट हो जाने के बाद ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय कर्मों का नाश हो जाता है तब इस आत्मा में सम्पूर्ण लोकालोक को प्रकाशित करने वाला केवलज्ञान प्रकट हो जाता है और यह आत्मा ‘सर्वं जानाति इति सर्वज्ञः' इस सार्थक नाम से सर्वज्ञ कही जाती है उस समय इन्द्र की आज्ञा से कुबेर दिव्य समवशरण की रचना करता है। उस समवशरण में 12 सभाओं में असंख्य देवगण, मनुष्य और तिर्यंच भी उपदेश सुनते हैं। भगवान् की दिव्यध्वनि सात सौ लघुभाषाओं और अठारह महाभाषाओं, इस तरह सात सौ अठारह भाषाओं में खिरती है अथवा संपूर्ण श्रोताओं के कान में पहुँचकर उन-उनकी भाषा रूप परिणत होकर सर्वभाषामय हो जाती है। लिंग किसे कहते हैं ? . धातु और विभक्ति से रहित अर्थवान् शब्द लिंग कहलाते हैं // 125 // अर्थ किसे कहते हैं ? वाच्य–कहने योग्य विषय को अर्थ कहते हैं। धातु और विभक्तियों को छोड़कर जो अपने वाच्य अर्थ को कहने वाले शब्द हैं उनकी यहाँ लिंग संज्ञा है.। जैनेन्द्र व्याकरण में इसे ही “मृत" संज्ञा है। उस लिंग के दो भेद हैं-स्वर है अंत में जिनके ऐसे स्वरांत और व्यंजन है अंत में जिनके ऐसे व्यंजनांत / स्वरांत और व्यंजनांत के भी पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग के भेद से तीन-तीन भेद हैं। स्वरांत में भी अकारांतपर्यंत शब्द माने गये हैं और व्यंजनांत में ककारांत से लेकर हकारांतपर्यंत शब्द आते हैं। ___ अब यहाँ स्वरांत पुल्लिंग का प्रकरण पहले आवेगा। उसमें भी सर्वप्रथम अकारांत पुल्लिग शब्द से विभक्तियाँ लगाई जावेंगी। ___लोक व्यवहार में सि आदि की विभक्ति संज्ञा होने पर 'पुरुष' यह शब्द स्थित है। इससे परे विभक्तियाँ आती हैं // 126 //
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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