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________________ कातन्त्ररूपमाला ऋकारलकारौ च // 5 // ऋकारलकारौ च परस्परं सवर्णसंज्ञौ भवत: / ऋलू / पूर्वो ह्रस्वेः // 6 // तयोः सवर्णसंज्ञयोर्मध्ये पूर्वो वर्णो ह्रस्वसंज्ञो भवति / अ इ उ ऋ लु // परो दीर्घः // 7 // तयोः सवर्णयोर्मध्ये परो वर्णो दीर्घसंज्ञो भवति / आ ई ऊ ऋल् // स्वरोऽवर्णवजों नामि॥८॥ अवर्णवर्जः स्वरो नामिसंज्ञो भवति। इई उऊ ऋऋ लल् एऐ ओऔ // वर्णग्रहणे सवर्णग्रहणं / कारग्रहणे केवलग्रहणम्। ..... एकारादीनि सन्ध्यक्षराणि // 9 // एकारादीनि स्वरनामानि सन्ध्यक्षरसंज्ञानि भवन्ति / तानि कानि। ए ऐ ओ औ॥ . नित्यं सन्थ्यक्षराणि दीर्घाणि // 10 // सन्ध्यक्षराणि नित्यं दीर्घाणि भवंति। कादीनि व्यञ्जनानि // 11 // ऋकार और लकार भी परस्पर सवर्ण हैं // 5 // ऋकार और लकार भी परस्पर में सवर्ण संज्ञक हैं, जैसे-ऋ लु। पूर्व के वर्ण ह्रस्व हैं // 6 // इन सवर्ण संज्ञक स्वरों में पूर्व-पूर्व पाँच स्वर ह्रस्व संज्ञक हैं। अ इ उ ऋ लु। अंत के स्वर दीर्घ संज्ञक हैं // 7 // इन सवर्ण संज्ञक दश स्वरों में अंत-अंत के पाँच स्वर दीर्घ संज्ञक हैं। आ ई ऊ ऋ ल। अवर्ण को छोड़कर शेष स्वर नामि संज्ञक हैं // 8 // . अवर्ण को छोड़कर शेष बारह स्वरों की 'नामि' यह संज्ञा है। इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ। वर्ण के ग्रहण करने से सवर्ण का अर्थात् दोनों स्वरों का ग्रहण हो जाता है और 'कार' शब्द से ग्रहण करने से केवल एक स्वर का ही ग्रहण होता है जैसे अवर्ण कहने से अ आ दोनों ही आ गये एवं अकार कहने से मात्र 'अ' शब्द ही आता है। यह नियम सर्वत्र व्याकरण में समझना चाहिये। एकार आदि स्वर संध्यक्षर कहलाते हैं // 9 // एकार आदि स्वर, संध्यक्षर संज्ञक होते हैं। वे कौन हैं ? ए ऐ ओ औ / ये संध्यक्षर हमेशा ही दीर्घ रहते हैं // 10 // 'क' आदि वर्ण व्यंजन कहलाते हैं // 11 // . 1. हस्यते. एकमात्रतया उच्चार्यते इति हस्वः। 2. दृणाति विदारयति द्विमात्रतया मुखबिलमिति दीर्घः। 3. व्यज्यन्ते अकारादिभिः पृथकिक्रयन्ते इति व्यञ्जनानि अथवा विगतः अञ्जनः स्वरलेपो येभ्य इति व्यञ्जनानि /
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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