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________________ संज्ञासन्धिः 3 सिद्धः खलु वर्णानां समाम्नायो वेदितव्यः / ते के, -अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल ल ए ऐ ओ औ। क ख ग घ ङ / च.छ ज झ जा ट ठ ड ढ ण / त थ द ध न प फ ब भ म / य र ल व / श ष स ह इति / तत्र चतुर्दशादौ स्वराः॥२॥ तस्मिन् वर्णसमाम्नाये आदौ ये चतुर्दश वर्णास्ते स्वरसंज्ञा भवन्ति / ते के, अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल ल ए ऐ ओ औ इति / दश समानाः // 3 // - तस्मिन् वर्णसमाम्नाये आदौ ये दश वर्णास्ते समानसंज्ञा भवन्ति / ते के, -अ आ इ ई उ ऊ ऋऋ ल ल इति। तेषां द्वौ द्वावन्योऽन्यस्य सवर्णी // 4 // तेषां समानानां मध्ये द्वौ द्वौ वर्णावन्योऽन्यस्य परस्परं सवर्णसंज्ञौ भवत: अआ इई। उऊ ऋऋ लल् / तेषां ग्रहणं किमर्थं ? द्वयोर्हस्वयोर्द्वयोर्दीर्घयोश्च सवर्णसंज्ञार्थम् / . श्लोकः क्रमेण वैपरीत्येन, लघूनां लघुभिः सह / गुरूणां गुरुभिः साधु, चतुर्धेति सवर्णता // 1 // इन वर्गों के समूह को आज तक न किसी ने बनाया है और न कोई नष्ट ही कर सकते हैं ये वर्ण अनादि निधन हैं / उनको जानना चाहिये। वे कौन हैं ? अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ। क ख ग घ ङ। च छ ज झ बा ट ठ ड ढ ण / त थ द ध न / प फ ब भ म / य र ल व। श ष स ह / ये सैंतालीस वर्ण कहलाते हैं। इनमें आदि के चौदह अक्षर स्वर कहलाते हैं // 2 // इन वर्गों के समुदायों में आदि के जो चौदह अक्षर हैं, वे स्वर संज्ञक हैं। वे कौन-कौन हैं ? अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल ल ए ऐ ओ औ। ये चौदह स्वर हैं। दश समान संज्ञक हैं // 3 // - इन स्वरों में आदि के जो दश वर्ण हैं उनकी “समान” यह संज्ञा है। वे कौन हैं ? अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल ल। इनमें दो-दो वर्ण आपस में सवर्णी हैं // 4 // इस समान संजक स्वरों में दो-दो वर्ण आपस में सवर्ण संजक हैं। अ आ हुई उ ऊ ऋऋल ल। सूत्र में “तेषां" शब्द का ग्रहण क्यों किया है ? दो ह्रस्व वर्ण एवं दो दीर्घ वर्ण भी आपस में सवर्ण संज्ञक हैं इस बात को स्पष्ट करने के लिए सूत्र में “तेषां” पद सार्थक है / अर्थात् चार प्रकार से सवर्णता मानी गई है। श्लोकार्थ—क्रम से अर्थात् ह्रस्व ह्रस्व का दीर्घ दीर्घ का दीर्घ ह्रस्व का और ह्रस्व दीर्घ का यह चार भेद हैं। १.अनादिकालेन प्रवृत्त इत्यर्थः। सिद्धशब्दः अनित्यार्थो वा निष्पत्राथों वा प्रसिद्धार्थों वा / कांपिल्ये सिद्धस्थित इत्यत्र सिद्धशब्दोऽनादिमङ्गलवाची // 2. सम्यगाम्नायन्ते अभ्यस्यन्ते इति समाम्नायाः। श्लोकः। व्यञ्जनानि त्रयस्त्रिंशत्स्वराश्चैव चतुर्दश। अनुस्वारो विसर्गश्च जिह्वामूलीय एव च // 1 // गजकुम्भाकृतिवर्णः प्लुतश्च परिकीर्तितः॥ एवं वर्णास्विपञ्चाशन्मातृकाया उदाहृताः ॥२॥३.स्वयं राजन्त इति स्वराः॥
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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