________________ 348 कातन्त्ररूपमाला शीङ्पषिक्ष्विदिस्विदिमिदां निष्ठासेट् // 714 // - शीङादीनां निष्ठा सेट् गुणी भवति / शयित: शयितवान् / पवित: पवितवान् / बिधृषा प्रागल्भ्ये / धर्षित: धर्षितवान् / प्रक्ष्वेदित: प्रविण्णः / प्रस्येदित: प्रस्विनः / प्रमेदित: / प्रमिनः / प्रमित्रवान्। स्फायः स्फीः // 715 // स्फाय: स्फीरादेशो भवति निष्ठायां / स्फायी ओप्यायी वृद्धौ / स्फीत: स्फीतवान्। भावादिकर्मणोर्वोदुपधात् / / 716 // उदुपधाद्धातोर्निष्ठा सेट् गुणी भवति वा भावे आदिक्रियायाञ्च / द्योतितमनेन द्युतितमनेन / प्रद्योतित: प्रद्युतितः। यपि चादो जग्धिः // 717 // तकारादौ अगुणे यपि च परे अदेर्जग्धिर्भवति जग्धं अद्यते स्म निष्ठाक्तः / द्यतिस्यमास्थां त्यगुणे // 718 // एषां तकारादावगुणे प्रत्यये परे इड् भवति / दो अवखण्डने / दितवान् / अवसित: / माङ् माने। मितः / स्थित: स्थितवान्। वा छाशोः // 719 // छाशोस्तकारादावगुणे इड् वा भवति / छो छेदने / अवच्छित: अवच्छातः / शो तनूकरणे निशित: निशातः। शीङ् पूङ् धृष् क्ष्विद् खिद् मिद् धातु को निष्ठा के आने पर इट् सहित को गुण होता है // 714 // शी इ न गुण होकर = शयित: शयितवान् / पवित:, धर्षित: प्रक्ष्वेदितः, धृष्टः प्रविण्णः प्रस्वेदितः प्रस्विन्नः, प्रमेदित: प्रमिन्तः। निष्ठा के आने पर स्फाय को 'स्फी' आदेश होता है // 715 // स्फायी ओप्यायी-वृद्धिंगत होना। स्फीत: स्फीतवान्। उकार उपधावाली धातु से भाव और आदि क्रिया में निष्ठा के आने पर इट् सहित को गुण विकल्प से होता है // 716 // द्युत् उकार उपधावाली धातु है / द्योतितं द्युतितम् / प्रद्योतित: प्रद्युतितः / तकारादि अगुण और यप् प्रत्यय के आने पर अद् को जग्ध होता है // 717 // निष्ठा के तकार को ध होकर जग्ध: जग्धवान् / दो, षो, माङ् और स्था से नकारादि अगुण प्रत्यय के आने पर इट् होता है // 718 // दित: सितः, मित: स्थित: स्थितवान्। छो और शो धातु से तकारादि अगुण विभक्ति के आने पर विकल्प से इट् होता है // 719 // छो–छेदना, अवच्छित: अवच्छात: शो-पतला करना। निशित: निशातः /