________________ कृदन्त: 341 अदोमूः // 674 // दृगादिषु अदस् अमूर्भवति / अमुमिव पश्यतीति अमूदृश: अमूदृक्ष: अमूदृक् / दग्दृशदृक्षेषु समानस्य स्यः // 17 // दृगादिषु परेषु समानस्य सभावो भवति / समानमिव पश्यतीति सदृशः / सदृक्षः / सदृक् / नाम्यजातौ णिनिस्ताच्छील्ये // 676 // अजातौ नाम्नि उपपदे धातोणिनिर्भवति ताच्छील्येथें तच्छब्देन धात्वर्थों गृह्यते। उष्णं भोक्तुं शीलमस्य उष्णभोजी / धर्ममवभासितुं शीलमस्य धर्ममवभास्यत इति एवं शील: धर्मावभासी / प्रियवादी / प्रियवादिनी। कर्तर्युपमाने // 677 // कर्तृवाचिनि. उपमाने उपपदे धातोणिनिर्भवति / उष्ट्र इव क्रोशतीति उष्टक्रोशी। ध्वाक्षरावी / हंसगामिनी। व्रताभीक्ष्ण्ययोश्च // 678 // व्रताभीक्ष्ण्ययोरर्थयोर्धातोणिनिर्भवति। व्रतं शास्त्रविहितो नियमः। आभीक्ष्ण्यं पौन:पुन्यं / अश्राद्धभोजी / स्थण्डिलशायी / क्षीरपायिण: उशीनराः / सौवीरपायिणो बाहिकाः / मनः पुंवच्चात्र // 679 // कर्मण्युपपदे मन्यतेणिनिर्भवति उपपदस्य पुंवद्भवति यथासम्भवं / पटुमानी / पट्वीमात्मानं मन्यते / पटुमानिनी। ... दृग् आदि के आने पर अदस् को 'अम्' आदेश होता है // 674 // / ' अमुम् इव पश्यति अमूदृशः इत्यादि। दृग् दृश और दृक्ष के आने पर समान को 'स' आदेश होता है // 675 // समानमिव पश्यति सदृश: इत्यादि। जाति से भिन्न नाम उपपद में होने पर तत्शील अर्थ में धातु से णिन् प्रत्यय होता है // 676 // तत् शब्द से धातु अर्थ लिया जाता है। उष्णं भोक्तुं शीलम् अस्य-उष्ण खाने का है स्वभाव जिसका उष्ण भुज से णिन् होकर उष्णभोजिन् सि विभक्ति में उष्णभोजी बना। धर्मावभासी, प्रियवादी, प्रियवादिनी इत्यादि बनेंगे। कर्तावाची उपमान उपपद में होने पर धातु से णिन् प्रत्यय होता है // 677 // उष्ट्र इव क्रोशति इति = उष्ट्र क्रोशी, ध्वाक्षरावी, हंस-गामिनी इत्यादि। - व्रत और आभीक्ष्य अर्थ में धातु से णिन् प्रत्यय होता है // 678 // शास्त्र विहित नियम को व्रत कहते हैं। पुन: पुन: को आभीक्ष्य कहते हैं। श्राद्धे भोक्तुं शीलमस्य न अश्राद्ध भोजी स्थण्डिल शेते स्थंडिलशायी इत्यादि। कर्म उपपद में होने पर मनु धातु से णिन् प्रत्यय होता है और यथा-संभव उपपपद को पुंवद् भाव हो जाता है // 679 // * पटुम् आत्मानं मन्यते-पटुमानी, पट्वीम् आत्मानं मन्यते काचित् स्त्री = पटुमानिनी यहाँ पट्वी को पुंवद् भाव हो गया है।