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________________ 339 कृदन्तः रेफात्परौ छकारवकारौ लोप्यौ भवत: क्वौ धुट्यगुणे पञ्चमे च / मूर्छ मू: / धूर्व धूः। वहे पञ्चम्यां भ्रंशेः // 664 // वहेः पञ्चम्यन्त उपपदे भ्रंशे: क्विप् भवति / भ्रंश भ्रंश अध:पतने / वहात् भ्रश्यत इति वहभ्रट् / . स्पृशोऽनुदके // 665 // अनुदके नाम्नि उपपदे स्पृश: क्विप् भवति / स्पृश संस्पृशे / घृतस्मृक् मन्त्रस्पृक् / अदोऽनन्ने // 666 // अनन्न उपपदे अद: क्विप् भवति / सस्यमत्तीति सस्यात् / तृणात् / . . क्रव्ये च // 667 // क्रव्ये चोपपदे अदः क्विप् भवति पक्वेऽथें / क्रव्यात् / पुनर्वचनादण अपक्केऽपि / क्रव्याद: राक्षस। - ऋत्विग्दधृक्स्स्रग्दिगुष्णिल्छ / / 668 // एते क्विबन्ता निपात्यन्ते / ऋतौ यजतीति स्वपि वपि इत्यादिना संप्रसारणं, वमुवर्ण इति वत्वं / ऋत्विक् / धृष्णोतीति दधृक् / स्रक् / दिक् / उष्णिक् / सत्सूद्विषद्गृहयुजविदभिदजिनीराजामुपसर्गेऽष्यनुपसर्गेऽपि // 669 // मूर्च्छ धू धातु हैं इनके छकार वकार का लोप होकर मू: धू: बना। वह पंचम्यंत उपपद में होने पर भ्रंश से क्विप् होता है // 664 // भ्रश भ्रंश= अध:पतन होना / बहात् भ्रश्यते वहभ्रट् बना। ____ अनुदक नाम उपपद में होने पर स्पृश् से क्विप् होता है // 665 // स्पृश्–संस्पर्श करना, घृतं स्पृशति-घृतस्पृक् मंत्रस्पृक् / . अन्त उपपद में न होने पर अद् से क्विप होता है // 666 // सस्यं अत्तीति सस्य अद्-सस्याद् सि विभक्ति में 'सस्यात्' बना ऐसे ही तृणम् अत्ति = तृणात् बना। . . और क्रव्य उपपद में होने पर पक्व अर्थ में अद् से क्विप होता है // 667 // क्रव्यम् अत्ति =क्रव्यात् / पुनर्वचन से अण् भी होता है और अपक्व अर्थ में भी होता है। क्रव्याद:-राक्षस:। ऋत्विग् दधृक् स्रक् दिग् और उष्णिक ये क्विबन्त शब्द निपात से सिद्ध हुए हैं // 668 // ऋतौ यजति है 'स्वपि वाचि' इत्यादि सूत्र से संप्रसारण होकर ऋतु इज् रहा 'वमुवर्णः' सूत्र से संधि होकर ऋत्विज् लिंग संज्ञा होकर सि विभक्ति में “चवर्ग दृगादीनां च" सूत्र से ग होकर प्रथम अक्षर होकर ऋत्विक् बना है। धृष्णोति इति 'दधृक्' सृजतीति-स्रक् दिशति इति दिक्, उष्णिक है। सत्, स्. द्विष्, द्रुह् युज् विद् भिद् जि, नी, और राज् को उपसर्ग और अनुपसर्ग में भी एवं नाम उपपद अनाम उपपद में भी क्विप् प्रत्यय होता है // 669 //
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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