________________ कातन्त्ररूपमाला कृत्ययुटोऽन्यत्रापि // 510 // कृत्यो युट् च उक्तादन्यत्रापि भवति / स्ना शौचे। स्नानीयं चूर्णं / दानीयो ब्राह्मण: / वृत् वर्तने। समावर्तनीयो गुरुः // . स्वराद्यः // 511 // स्वरान्ताद्धातोर्य: प्रत्ययो भवति / चेयं जेयं नेयं / उदौद्भ्यां कृधः स्वरवत्॥५१२ / / उदौद्भ्यां पर: कृद्य: स्वरवद्भवति / लव्यं अवश्यलाव्यं / शकिसहिपवर्गान्ताच्च // 513 // शकिसहिभ्यां पवर्गान्ताच्च यो भवति / शक्ल शक्तौ / शक्यं सह्यं / जप्यं / लम्यं आत्खनोरिच्च॥५१४॥ आकारान्तात्खनो नश्च यो भवति अनयोरन्त इकारागमो भवति / देयं पेयं / खनु अवदारणे। खनेरिकारादेशः / अन्येषामागमः / खेयं यमिमदिगदां त्वनुपसर्गे // 515 // एषामुपसर्गाभावे यो भवति / यम्यं मद्यं / गद्यं अनुपसर्ग इति किं ? घ्यण-प्रयाम्यं / प्रमाद्यं प्रगाद्यं। चरेराङ्गि चागुरौ // 516 // ऊपर कहे हुए भावकर्म से अतिरिक्त अन्यत्र भी कृत्य और युट् प्रत्यय होते हैं // 510 // स्ना-शुद्ध होना। स्नानीयं / दानीयः / वृत्-वर्तन करना / समावर्तनीयः। - स्वरान्त धातु से 'य' प्रत्यय होता है // 511 // चि= चेयं जेयं नेयं। उत् औत् से परे कृदन्त 'य' प्रत्यय होता है // 512 // लुञ्-गुण होकर य प्रत्यय के आने पर भी स्वरवत् ओ को अव्, होकर लव्यं बना। शकि, सहि और पवर्ग से परे 'य' प्रत्यय होता है // 513 // शक्ल = शक्यं / सह्यं / जप्यं / लभ्यं। ___आकारान्त और खन से 'य' प्रत्यय होता है // 514 // इनके अन्त में इकार का आगम होता है। दा इ य = देयं पेयं इत्यादि / खनु-खन् के न को इकार आदेश होता है। और अन्य धातुओं में आगम होता है / खेयं / ___ यम् मद् और गद् धातु को अनुपसर्ग में 'य' होता है // 515 // यम्यं, मद्यं, गद्यं / अनुपसर्ग ऐसा क्यों कहा ? उपसर्ग पूर्वक इन धातुओं से ५४१वें सूत्र से घ्यण प्रत्यय होता है और णानुबन्ध से वृद्धि हो जाती है। प्रयाम्यं / प्रमाद्यं प्रगाद्यं / उपसर्ग रहित आङ् से अगुरु अर्थ में चर् धातु से 'य' प्रत्यय होता है // 516 //