________________ 306 कातन्त्ररूपमाला नलोपश्च भवति यिन्यायो: परत: / विध्वस्यते // अनुडुह्यते। . ओतायिन्नायिपरे स्वरवत // 475 // ओत: परौ यिन्नायिस्वरवद्भवतः // ओ अविति संधिः / गामित्यात्मन इच्छति गव्यति / गौरिवाचरति गव्यते। औत्वश्च // 476 // औत: परो यिन्नायिस्वरवद्भवति // नावमिच्छत्यात्मन: नाव्यति / नौरिवाचरति नाव्यते। वा गल्भक्लीबहोढेभ्यः // 477 // एभ्य: परमात्मनेपदं भवति / वाशब्दस्येष्टार्थत्वात् क्वचिदायिलोप: / गल्भ इव आचरति गल्भते / क्लीबते / होढते। कष्टकक्षसत्रगहनाय पापे क्रमणे॥४७८ // एभ्यश्चतुर्थ्यन्तेभ्य: पापे वर्तमाने क्रमण इत्यर्थे आयिप्रत्ययो भवति। कष्टाय कर्मणे क्रामति कष्टायते / एवं कक्षायते / सत्रायते / गहनायते / पाप इति किं ? कष्टाय तपसे क्रामति / . .. बाष्पोष्मफेनमुद्वमति // 479 // बाष्पादिभ्यो द्वितीयान्तेभ्य उद्वमनेऽर्थे आयिप्रत्ययो भवति // बाष्पमुद्रुमति बाप्पायते / ऊष्माणमुद्वमति उष्मायते / नस्य लोप: फेनमुद्वमति फेनायते।। सुखादीनि वेदयते // 480 // सुखादिभ्यो द्वितीयान्तेभ्यो वैदयते इत्यर्थे आयिप्रत्ययो भवति / सुखमावेदयते सुखायते / एवं दुःखायते / तदनुभवतीत्यर्थः। विध्वस्यते / अनुडुह्यते। __ओकार से परे यिन आय प्रत्यय स्वरवत हो जाते हैं // 475 // गां इति आत्मन: इच्छति / गो य ति 'ओ अव्' गव्यति / गौरिव आचरति = गव्यते। औकार से परे यिन् आय् स्वरवत् होते हैं // 476 // नावं इच्छति आत्मनः = नाव्यति / नाव्यते। . गल्भ, क्लीब और होढ से परे आत्मनेपद होता है // 477 // वा शब्द इष्ट अर्थवाची होने से कहीं पर आय का लोप हो जाता है। गल्भते / क्लीबते / होढते। गल्भ-धृष्टता / होढ-अनादर होना। कष्ट, कक्ष, सत्र और गहन ये चतुर्थ्यंत शब्द पाप अर्थ में होवें तव आय् प्रत्यय होता है // 478 // कष्टाय कर्मणे क्रामति = कष्टायते / कक्षायते। सत्रायते। जहनायते। पाप अर्थ हो ऐसा क्यों कहा ? तो कष्टाय तपसे क्रामति / यहाँ तपस्या अर्थ में आय् प्रत्यय नहीं हुआ है। वाष्प, ऊष्म और फेन से उद्गमन अर्थ में आय् प्रत्यय होता है // 479 // वाष्पमुद्वमति = वाष्पायते / ऊष्मायते / फेनायते। द्वितीयान्त, सुखादि से वेदन अर्थ में आय् प्रत्यय होता है // 480 // सुखमावेदयते = सुखायते / दुःखायते / उसका अनुभव करता है।