________________ तिङन्त: 305 उपमानादाचारे // 470 // उपमानानाम्नो यिन्भवति आचारेऽर्थे / पुत्रमिव आचरति पुत्रीयति माणवकं / एवं क्षीरीयति जलं। भूपीयति पुत्रकं / इति यिन्नन्तः / कर्तुरायिस्सलोपश्च // 471 // कर्तुंरुपमानानाम्न: आयि भवति आचारेऽर्थे यथासंभवं सलोपश्च / / आय्यन्ताच्च // 472 // आयिप्रत्ययान्ताद्धातोरात्मनेपदं भवति / श्येन इव आचरति श्येनायते। श्येनायेत / श्येनायतां / अश्येनायत। अश्येनायिष्ट / श्येनायाञ्चक्रे। श्येनायिता। श्येनायिष्यते। अश्येनायिष्यत / एवं अप्सरायते॥ ओजसोप्सरसोर्नित्यं पयसस्तु विभाषया / - आयिलोपच विज्ञेयो गर्दभत्यश्वतीत्यपि // 1 // ओजस्वि इव आचरति / ओजायते / एवं अप्सरायते / पयायते। नामिव्यञ्जनान्तादायेरादेः // 473 // नामिव्यञ्जनान्तात्परस्य आयेरादेलोंपो भवति / पयस्यते / वाशब्दस्येष्टाऽर्थत्वात्क्वचिदायिलोप: / आम्यन्ताच्चेत्यन्तग्रहणाधिक्यादायिलोपे परस्मैपदं भवति // गर्दभ इव आचरति गर्दभति / एवं अश्वति / अग्नीयते / एवं पटूयते / पित्रीयते / रैयते / . नलोपश्च // 474 // आचार अर्थ में उपमान नाम से यिन् प्रत्यय होता है // 470 // पुत्रमिव आचरति = पुत्रीयति / क्षीरीयति। भूपीयति / इस प्रकार से नाम से यिनंत प्रत्ययान्त समाप्त हुआ। आचार अर्थ में उपमान, नामकर्ता से 'आय' प्रत्यय होता है // 471 // ... और यथा संभव 'स' का लोप हो जाता है। आय् प्रत्ययान्त धातु आत्मनेपदी होता है // 472 // श्येन इव आचरति = श्येनायते / एवं अप्सरा इव आचरति = अप्सरायते / अप्सरस् में सकार का लोप हुआ है। श्लोकार्थ ओजस् और अप्सरस् के सकार का नित्य ही लोप होता है और पयस् के सकार का विकल्प से लोप होता है। एवं गर्दभ और अश्व में आय् प्रत्यय का लोप हो जाता है // 1 // ओजस्वि इव आचरति = ओजायते / पय: इव आचरति = पयायते। . नामि, व्यञ्जनान्त से परे आय की आदि का लोप होता है // 473 // पयस्यते / वा शब्द इष्ट अर्थ वाला होने से कहीं पर आय का लोप होता है। 'अय्यन्ताच्च' सूत्र 472 में 'अंत' शब्द के ग्रहण की अधिकता होने से 'आय' प्रत्यय का लोप होने पर परस्मैपद होता है। गर्दभ इव आचरति = गर्दभति / अश्वति / अग्नीयते। आय की आदि 'आ' का लोप होकर पूर्व स्वर को ई और या दीर्घ होकर अग्नीयते बना। पटूयते / पित्रीयते / रैयते। यिन् आय् प्रत्यय के आने पर 'न' का लोप हो जाता है // 474 //