________________ तिङन्त: 291 पूज् धातो: पर इड् न स्यात् / पूज् पवने। पवितुमिच्छति पुपूषति / क्र अरिरिषति / अंज अञ्जिजिषति / अश अशिशिषति / चिकरिषति / ग निगरणे। जिगरिषति / जिग लिषति / दब अनादरे / दिदरिषति / धृञ् अनवस्थाने दिधरिषति।। ग्रहिस्वपिप्रच्छां सनि // 404 // एषां सम्प्रसारणं भवति सनि परे / पिपृच्छिषति / सुषुप्सति / चेः किर्वा // 405 // चे: किर्भवति वा परोक्षायां सनि च परे / चिकीषति / चिकीषते / तुतुत्सति / मुमूर्षति मुमूर्षते / मुमुक्षति / मुमुक्षते / रुरुत्सति / बुभुक्षते / युयुक्षति युयुक्षते / ऋदन्तस्येरगणे॥४०६॥ ऋदन्तस्य इर भवति अगुणे परे / चिकीर्षति / चिकीर्षते / चिक्रीषति / चिक्रीषते / वृड्ञोश्च / / 407 // वृबृजोश्च ऋकारस्य उर् भवत्यगुणे परे / वुवूर्षते / विवरिषते / ग्रहिगुहोः सनि // 408 // ग्रहिगुहो: सनि नेड् भवति / जिघृक्षति / जिघृक्षते / गुहू संवरणे / जुघुक्षति / चोरयितुमिच्छति सन् / चुचोरयिषति / तन्त्रयितुमिच्छति / सन् / तितन्त्रयिषति / विवारयिषति / विवारयिषते / इत्यादि / एवं सर्वमुन्नेयं / इति सनन्त: समाप्तः। कृ=चिकरिषति / गृ-जिगरिषति / जिगलिषति / दृज् = अनादर करना। दिदरिषति / धृञ्-घूमना, दिधरिषति। सन् के आने पर गृह स्वप और प्रच्छ को संप्रसारण हो जाता है // 404 // पिपृच्छिषति / सुषुप्सति / ____ परोक्षा और सन् में चवर्ग को कवर्ग होता है // 405 // चेतुम् इच्छति = चिकीषति / चिकीषते / तुतुत्सति / मर्तुम् इच्छति—क्र को उर् और उपधा को दीर्घ होकर मुमूर्षति / मुमूर्षते। मोक्तुम् इच्छति = मुमुक्षति / मुमुक्षते। रुधिर-रुरुत्सति / भोक्तुम् इच्छति = बुभुक्षते / युयुक्षति / युयुक्षते। ___ अगुण में ऋदंत को इर् होता है // 406 // कर्तुम् इच्छति चिकीर्षति / चिकीर्षते / क्री–खरीदना चिक्रीषति / चिक्रीषते। अगुण के आने पर वृञ् और वृङ् के ऋकार को उर् होता है // 407 // वुवूर्षते / विवरिषते। .. सन् के आने पर ग्रह और गुह को इट् नहीं होता है // 408 // ग्रह, ग्रह कवर्ग को चवर्ग होकर ज ग्रह अभ्यास को इवर्ण, ग्रह को संप्रसारण तृतीय को चतुर्थ अक्षर घृ एवं “हो ढः” से ढ “घढो: क: से” सूत्र से क् होकर चिघृक्षते / गुहू–संवरण करना / जुघुक्षति / चोरयितुम् इच्छति = चुचोरयिषति / तंत्रयितुं इच्छति = तितन्त्रयिषति / विवारयिषति / विवारयिषते / इत्यादि / इस प्रकार से सनंत प्रकरण समाप्त हुआ।