________________ 288 कातन्त्ररूपमाला मिञादीनां स्वरस्य इसादेशो भवति अभ्यासलोपश्च सनि परे। डुमिञ् प्रक्षेपणे। मातुमिच्छति मित्सति मित्सते। मीङ् श्लेषणे। मातुमिच्छति मित्सते। मा इति मेङ्माङोरपि ग्रहणं / मातुमिच्छति मित्सते। धित्सति धित्सते / दित्सति / दित्सते / रभ राभस्ये / आरिप्सते / डुलभष् प्राप्तौ / आलिप्सते। शक्ल शक्तौ / शक्तुमिच्छति शिक्षति / पल शल पत्तृ गतौ / पित्सति / पद गतौ / पित्सते / इबन्तर्धभ्रस्जदम्भश्रियर्णभरज्ञपिसनितनिपतिदरिद्रां वा // 388 // एषां वा इड् भवति सनि परे / देवितुमिच्छति सन् दिदेविषति // ऋध वृद्धौ / अर्द्धितुमिच्छति सन् - अदिधिषति / भ्रस्ज पाके // बिभ्रज्जिषति / बिभ्रक्षति अत्र भ्रस्जेभृजादेशो वा इति भ्रस्जेस्थाने भृजादेशः / दम्भु दम्भे / दिदम्भिषति / भज श्रिङ् सेवायां / शिश्रयिषति शिश्रीषति / यु मिश्रणे। उवर्णस्य जान्तस्थापवर्गपरस्यावणे // 389 // . जान्तस्यापवर्गपरस्याभ्यासोवर्णस्य इत्वं भवत्यवणे परे सनि। यियविषति / युयूषति / जु इति सौत्रोऽयं धातुः / जिजावयिषति // टु क्षु रु कु शब्दे / रिरावयिषति / लिलावयिषति / लुनाति कश्चित्तमन्यः प्रयुङ्क्ते। धातोश्च हेताविन्। पिपावयिषति। पिपिविषति। बिभावयिषति। बिभविषति। ऊर्गुब् आच्छादने / प्रोर्णवितुमिच्छति सन् प्रोणुनविषति / बिभरिषति / ज्ञपि / जिज्ञपयिषति ज्ञीप्सति / षणु दाने // सिषनिषति। स्तौतीनन्तयोरेव षणि // 390 // निमित्तात् पर: स्तौतीनन्तयोरेव स: षमापद्यते षणि षत्वभूते सनि परे। इति नियमान षत्वम् / सिसासति // दरिद्रा दुर्गतौ। डुमिञ्-प्रक्षेपण करना / मातुम् इच्छति 'सस्य सेऽसार्वधातुकेत:' से स को त् होकर मित्सति। : मित्सते / मीङ्-श्लेषण करना / मातुम् इच्छति = मित्सते / मा इससे मेङ् माङ का भी ग्रहण होता है। मातुम् इच्छति = मित्सते। धातुम् इच्छति = धित्सति धित्सते। दातुम् इच्छति = दित्सति दित्सते। रभ-प्रारंभ करना = आरिप्सते डुलभष्-प्राप्त करता है = आलिप्सते / शक्ल = शक्ति अर्थ में है शक्तुम् इच्छति = शिक्षति / पल शल पत्लु-गति अर्थ में है। पित्सति / पद-गति अर्थ में है पित्सते। __इप् अन्त: ऋध भ्रस्ज् दम्भु श्रि यु ऊर्ण भर ज्ञप सन् तन् पति दरिद्र शब्दों से सन् के आने पर इट् विकल्प से होता है // 388 // देवितुम् इच्छति = दिदेविषति। ऋध-वृद्धि होना = अर्द्धितुम् इच्छति = अदिधिषति / भ्रस्ज्-भजितुम् इच्छति = विभ्रज्जिषति / विभ्रक्षति / भ्रस्जको विकल्प से भृज आदेश हो जाता है। दम्भु-दम्भ करना / दिदम्भिषति / भज श्रिञ्–सेवा करना / शिश्रयिषति / शिश्रीषति / यु-मिश्रण करना। जकारान्त प वर्ग से रहित अभ्यास के उ वर्ण को सन् के आने पर इ वर्ण हो जाता है // 389 // __विकल्प से—यियविषति, युयूषति जु यह धातु सूत्र में है। जिजावयिषति / टु, क्षुरु, कु-शब्द करना। रिरावयिषति / लिलावयिषति / कोई काटता है, अन्य कोई उसको प्रेरित करता है इस अर्थ में “धातोश्च हेताविन्”४४७ से पाययितुम् इच्छति = पिपावयिषति / पिपविषति / विभावयितुम् इच्छति विभावयिषति विभविषति। ऊर्णञ्-आच्छादन करना प्रोर्णवितुम् इच्छति। प्रोणुन-विषति / भर्तुम् इच्छति = बिभरिषति / ज्ञप्-जिज्ञपयिषति, जीप्सति / षणु-देना। सिषनिषति। सन् के आने पर निमित्त से परे स्तौति और इन्नंत में ही स को ष होता है // 390 //