________________ 286 कातन्त्ररूपमाला सनन्ताद्धातोः पूर्ववत्पदं भवति // गुप् गोपनकुत्सनयोः। जुगुप्सते मां जुगुप्सेते। जुगुप्सन्ते / जुगुप्सेत / जुगुप्सतां अजुगुप्सत। . अस्य च लोपः // 378 // धातोरस्य लोपो भवत्यननि प्रत्यये परे / अजुगुप्सिष्ट / जुगुप्साञ्चक्रे / जुगुप्सिता / जुगुप्सिषीष्ट / जुगुप्सिष्यते। अजुगुप्सिष्यत // तिज निशाने क्षमायाञ्च / तितिक्षते // कित निवासे रोगापनयने च / विचिकित्सति / अकारोच्चारणं किं ? स्वरादेर्द्वितीयस्येति सन एव द्विवचनार्थं / तेन अर्थान् प्रतीषिषति / ___ मान्बधदान्शान्भ्यो दीर्घश्चाभ्यासस्य // 379 // मानादिभ्यो धातुभ्य: पर: सन् भवति तेषां धातूनामभ्यासस्य दीपों भवति स्वार्थे / मानपूजायां / मोमांसते / बध बन्धने / बीभत्सते / दान अवखण्डने / दीदांसते / शान तेजने / शीशांसति / शीशांसते / गुपो बधेश्च निन्दायां क्षमायां च तथा तिजः / / संशये च प्रतीकारे कित: सन्नभिधीयते // 1 // जिज्ञासावज्ञयोरेव मानदानोर्विधीयते // निशानेऽर्थे तथा शानो नायमर्थान्तरे क्वचित् // 2 // धातोर्वा तुमन्तादिच्छतिनेककर्तृकात्॥३८० // तुमन्तादिच्छतिना सह एककर्तृकाद्धातो: पर: सन् वा भवति / उवर्णान्ताच्च // 381 // गुप्-गोपन और कुत्सन अर्थ में है / जुगुप्सते / जुगुप्सेत / जुगुप्सतां / अजुगुप्सत।। अन् प्रत्यय के न होने पर धातु के अकार का लोप होता है॥३७८ // अजुगुप्सिष्ट / जुगुप्साञ्चक्रे / जुगुप्सिता / जुगुप्सिषीष्ट जुगुप्सिष्यते / अजुगुप्सिष्यत / तिज-निशान और क्षमा अर्थ है / तितिक्षते / कित-निवास और रोग को दूर करना / चिकित्सति / अकार का उच्चारण क्यों ? 'स्वरादेर्द्वितीयस्य' इस सूत्र से सन् प्रत्यय में द्वित्व होता है। . मान् वध, दान, शान् से परे सन् होता है और स्वार्थ में धातु के अभ्यास को दीर्घ होता है // 379 // ___ मान-पूजा अर्थ में है “सन्यवर्णयस्य" 297 सूत्र से अभ्यास को इत्व होकर इसी 379 सूत्र से दीर्घ होकर मीमांसते बना / बध-बन्धन होना / बीभत्सते / दान-अवखण्डन करना। दीदांसते / शान-तेज अर्थ में है। शीशांसति / शीशांसते। श्लोकार्थ—गुप और वध धातु निंदा अर्थ में तिज धातु तितिक्षा क्षमा अर्थ में कित धातु संशय और प्रतीकार अर्थ में हैं // 1 // ____मान और दान धातु जिज्ञासा और अवज्ञा अर्थ में एवं शान् धातु निशान अर्थ में हैं ये क्वचित् अर्थांतर में नहीं हैं // 2 // ___तुमन्त से इच्छति धातु के साथ एक कर्तृक, धातु से परे सन् प्रत्यय विकल्प से होता है // 380 // उवर्णान्त धातु से सन् के आने पर इट् नहीं होता है // 381 // .