________________ तिडन्तः 257 उतोऽयुरुणुस्नुक्षुहुवः // 274 // युरुणुस्नुक्षुहुवर्जितादेकस्वरादुदन्तात्परमसार्वधातुकमनिड् भवति / अहौषीत् अहौष्टां अहौषुः / अधात् अधातां अधुः / स्थादोरिरद्यतन्यामात्मने / इति इकारादेशः / स्थादोश्च // 275 // स्थादासंज्ञकयोर्गुणो न भवति अनिटि सिजाशिषीश्चात्मनेपदे परे / इति गुणनिषेधः / ह्रस्वाच्चानिट इति सिचो लोप:। अधित अधिषातां अधिषत। अधिथा: अधिषाथां अधिढ्वं / अधिषि अधिष्वहि अधिष्महि / समस्थित समस्थिषातां समस्थिषत / इति जुहोत्यादिः // दिवु क्रीडाविजिगीषादीति / अदेवीत् अदेविष्टां अदेविषुः। ___ स्वरतिसूतिसूयत्यूदनुबन्धाच्च // 276 // ___एभ्य: परपसार्वधातुकमनिड् भवति वा / षूङ प्राणिप्रसवे / असोष्ट असोषातां असोषत / असोष्ठाः आसोषाथाम् / नाम्यन्ताद्धातोराशीरद्यतनीपरोक्षासु धो ढः // 239 // * नाम्यन्ताद्धातोराशीरद्यतनीपरोक्षासु धो ढो भवति। असोढ्वं / असोषि असोष्वहि असोष्महि / असविष्ट असविषाताम् / असविषत / दहि दिहि दुहि इत्यादिनानिट् // युरु, णु, स्नु, क्षु और णु को छोड़कर उकारांत एक स्वर वाली धातु को असार्वधातुक में इट् नहीं होता है // 274 // अहौषीत् अहौष्टां अहौषुः / अधात् / सूत्र 241 से स्था और दा संज्ञक धातु को आत्मनेपद में अद्यतनी में इकार हो जाता है। ___अनिट् आशिष् सिच् के परे आत्मनेपद में स्था और दा संज्ञक को गुण नहीं होता है // 275 // ___ इस सूत्र से गुण का निषेध हो गया है। 'हस्वश्चानिटः' सूत्र 243 से सिच का लोप हो गया। अंधित अधिषातां अधिषत / समस्थित समस्थिषातां / इस प्रकार से अद्यतनी में जुहोत्यादि गण समाप्त हुआ है। अद्यतनी में दिवादि गण प्रारंभ होता है। दिवु-क्रीड़ा विजिगीषा आदि अर्थ में है। अदेवीत् अदेविष्टां अदेविषुः / षुञ् षूङ धातु और ऊकारानुबंध धातु से असार्वधातुक में अनिट् विकल्प से होता है // 276 // .. घूङ् प्राणि प्रसव अर्थ में है। अनिट् पक्ष में—असोष्ट-असोषातां असोषत / असो ध्वं है। नाम्यंत धातु से आशी: अद्यतनी परोक्षा में ध को 'ढ' हो जाता है // 239 // इससे असोढ्वं बना / इट् पक्ष में-असविष्ट असविषातां / "दहिदिहिदुहि इत्यादि” सूत्र से इट् नहीं होता है।