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________________ 256 कातन्त्ररूपमाला आलोपोऽसार्वधातुके // 270 // धातोराकारस्य लोपो भवति स्वरादावगुणेऽसार्वधातुके परे / आख्यत् आख्यतां आख्यन् / लिप् उपदेहे / अलिपत् / व्यवस्थितवाधिकाराल्लिम्पादीनामात्मनेपदे वा अण् पक्षे सिन् / अलिपत अलिप्त / धटश्च धुटि सिचो लोपः / अलिपेतां अलिप्सातां अलिपन्त अलिप्सत / अलिपथा: अलिप्थाः / अलिपेथां अलिप्साथां अलिपध्वं अलिब्ध्वं / अलिपे अलिप्सि अलिपावहि अलिप्स्वहि अलिपामहि अलिप्स्महि। ' षिचिर् क्षरणे / असिचत् / ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च। आह्वत् आह्वतां आह्वन् / आह्वत आह्वेतां आह्वन्त / हन् हिंसागत्योः। अद्यतन्यां च // 271 // हन्तेर्वधिरादेशो भवति अद्यतन्यां परत:। अवधीत् अवधिष्टां अवधिषुः। 'आत्मनेपदे वा' हन्तेर्वधिरादेशो वा भवति / आङो यमहनौ स्वाङ्गकर्मको चेत्यात्मनेपदं भवति। हनः // 272 // हन्तेरन्तस्य लोपो भवत्यद्यतन्यां सिच्यात्मनेपदे तथयोः परत: / आहत आहसातां आहसत। अवधिष्ट अवधिषातां अवधिषत // इत्यादिः // हु दानादनयोः।। सिचि परस्मै स्वरान्तानाम्॥२७३॥ स्वरान्तानां वृद्धिर्भवति परस्मैपदे सिचि परे / नामिन एवं। असार्वधातुक में स्वरादि अगुण प्रत्यय के आने पर धातु के आकार का लोप हो जाता है // 270 // आख्यत् / लिप-अलिपत्। व्यवस्थित वा के अधिकार से लिंपादि को आत्मनेपद में अण् होता है और विकल्प से सिच् होता है / अण् में-अलिपत / सिच में अलिप्त 'धुटश्च धुटि' इस 247 सूत्र से,सिच का लोप हो गया है। अलिप्सातां अलिप्सत / पिचिर्-क्षरण होना। असिचत् / ह्वेञ्-स्पर्धा करना और शब्द करना-बुलाना / 252 सूत्र से संध्यक्षर धातु को आकारांत होकर 270 से आकार का लोप होकर 267 से अण् होकर आह्वत् बना / आह्वत / हन्-हिंसा और गति / . अद्यतनी में हन् को वध आदेश हो जाता है // 271 // अवधीत् ‘आत्मनेपदे वा' ३६९वें सूत्र से आत्मनेपद में हन् को वध आदेश विकल्प से होता है। “आङो यमहनौ स्वाङ्गकर्मको च” इस नियम से आत्मनेपद हो जाता है। हन् के नकार का लोप हो जाता है आत्मनेपद में अद्यतनी के सिच् के आने पर // 272 // आङ् उपसर्ग पूर्वक अट्का आगम होकर आअहत = आहत। आहसातां आहसत। पक्ष में-अवधिष्ट। इस प्रकार से अदादिगण में अद्यतनी प्रकरण समाप्त हुआ। . अद्यतनी में जुहोत्यादि गण प्रारम्भ होता है। हु-दान देना और भोजन करना। परस्मैपद में सिच के आने पर स्वरांत धातु को वृद्धि हो जाती है // 273 // नामि को ही वृद्धि होती है।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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