________________ तिङन्त: 241 अशनार्थे भुज रुचादिर्भवति / इति रुचादिः / भुङ्क्ते भुञ्जाते भुञ्जते / भुझे भुञ्जाथे। भुङ्ग्ध्वे / भुञ्जे भुज्वहे भुज्महे / युजिर् योगे। युनक्ति युक्त: युञ्जन्ति // युञ्जते / युझे / युञ्जाथे युध्वे / युञ्जे युवहे युज्महे / रुन्ध्यात् / रुन्धीत / भुञ्जीत / युज्यात् युञ्जीत / रुणझु रुन्द्धात् रुन्द्धां रुन्धन्तु / रुन्द्धि / रुन्द्धात् रुन्द्धं रुन्द्ध / रुणधानि रुणधाव रुणधाम / भुङ्क्तां भुजातां भुञ्जतां / भुव भुञ्जाथां भुङ्ग्ध्वं / भुनजै भुनजावहै भुनजामहै / युनक्तु युक्तात् युक्तां युञ्जन्तु / युङ्ग्धि युक्तात् युङ्क्तं युक्त / युनजानि युनजाव युनजाम। युङ्क्तां / अरुणत् अरुणद् अरुन्र्धा अरुन्धन् / सोऽपदान्ते वा॥२०४॥ दधोरत्वं वा स्यात् तत्रापि शब्दबहुलभावात् / सोऽपदान्तेऽरेफप्रकृत्योरपि // 205 // पंदान्ते वर्तमानयोर्दधोरत्वं वा स्यात् ह्यस्तन्यां मध्यमपुरुषैकवचने / अरुणत्त्वं अरुणस्त्वं / अरुन्द्धं / अरुन्ध / अरुणधं अरुन्ध्व अरुन्ध्म / अभुङ्क्त अभुञ्जातां अभुञ्जत / अभुक्था : अभुञ्जाथां अभुङ्ग्ध्वं / अभुञ्जि। अभुज्वहि अभुज्महि / अयुन अयुनग् अयुक्तां अयुञ्जन् / अयुनक् अयुनग् अयुङ्क्तं अयुक्त / अयुनजं अयुव अयुज्म / अयुक्त अयुञ्जातां अयुञ्जत / अयुक्था: अयुञ्जाथां अयुङ्ग्ध्वं / अयुञ्जि अयुज्वहि अयुमहि / भावकर्मणोः / रुध्यते रुध्येते रुध्यन्ते / भुज्यते भुज्यते भुज्यन्ते / भिदिर् विदारणे। छिदिर् द्विधाकरणे। भिनत्ति। छिनत्ति / भिन्द्यात् / छिन्द्यात् / भिनत्तु / छिनत्तु / अभिनत् अभित्तां अभिन्दन् / अभिनत्त्वं अभिनस्त्वं अभिन्तं अभिन्त / अभिनदं अभिन्द्व अभिन्य। अच्छिनत् अच्छिन्ताम् अच्छिन्दन् / अच्छिनत्त्वं अच्छिनस्त्वं अच्छिन्तं अच्छिन्नत / अच्छिन्नत / अच्छिन्दम् अच्छिन्द्व अच्छिन्द्र / इति रुधादिः / - भुज् ते 'स्वराद्रुधादेः परो नशब्दः' सूत्र में 'न' विकरण होकर 'रुधादेविकरणान्तस्य लोपः' सूत्र से नकार के अकार का लोप होकर 'चवर्गस्यकिरसवणे' सूत्र 180 से चवर्ग को कवर्ग होकर ‘वर्ग तद्वर्गपञ्चमं वा' सूत्र से वर्ग का अंतिम अक्षर होकर भुङ्क्ते भुञ्जाते भुञ्जते / 'भुङ् क्षे' स् को ष होकर क्ष हो गया। * युजिर् धातु योग अर्थ में है / युनक्ति युक्त: युञ्जन्ति / रुन्ध्यात् / रुन्धीत / भुञ्जीत / युज्यात् / युञ्जीत / रुणद्ध / 'रुन्द्धि' हुधुड्भ्यां हेधिः' सूत्र से हिको धि होकर बना है। पंचमी के उत्तम पुरुष में रुणधानि रुणधाव रुणधाम / भुनजै भुनजावहे भुनजामहे / युनक्तु / अरुणत्। . द और ध से अकार विकल्प से होता है। वहाँ भी शब्द बहुलता होती है // 204 // ___ ह्यस्तनी के प्रथम पुरुष के एकवचन में पदान्त में वर्तमान द और ध को अकार विकल्प से होता है // 205 // - अरुणत् त्वं / जब अकार हुआ तब-अरुण: त्वं / अरुणधम् अरुन्ध्व अरुन्धम। अभुक्त अभुञ्जातां अभुञ्जत / अयुनक् अयुनम् / अयुक्त / भावकर्म में-रुध्यते / भुज्यते / भिदिर् विदारण अर्थ में है एवं छिदिर् द्विधा करने के अर्थ में है। भिनत्ति / छिनत्ति / भिन्द्यात् छिन्द्यात् / भिनत्तु / छिनत्तु अभिनत् अभिन्तां अभिन्दन् / अभिनत् अभिन: / अच्छिनत् / अच्छिनत / अच्छिन: / अच्छिन्दम् इस प्रकार से रुधादि गण समाप्त हुआ।