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________________ तिङन्त: 237 यणि वा // 188 // यणि परे जनेर्जादेशो वा भवति / जायते जन्यते / इति दिवादिः / अथ स्वादिगणः षुञ् अभिषवे। नुः स्वादेः // 189 // स्वादेर्गणाद्विकरणसंज्ञको नुर्भवति कर्तरि विहिते सार्वधातुके परे / सुनोति सुनुतः / नोर्वकारो विकरणस्य // 190 // नोविकरणस्यासंयोगपूर्वस्योकारस्य वकारो भवति स्वरादावगुणे सार्वधातुके परे / सुन्वन्ति / सुनोषि सुनुथ: सुनुथ / सुनोमि। उकारलोपो वमोर्वा // 191 // असंयोगपूर्वस्य विकरणस्योकारस्य लोपो वा भवति वमो: परत: / सुन्व: सुनुव: सुन्म: सुनुमः / सुनुते सुन्वाते सुन्वते / सुनुषे सुन्वाथे सुनुध्वे / सुन्वे सुन्वहे सुनुवहे सुन्महे सुनुमहे / / नाम्यन्तानां यणायिन्नाशीश्च्विचेक्रीयितेषु दीर्घः // 192 // * नाम्यन्तानां धातूनां दी? भवति यण् आय् इन् आशी: चेक्रीयितेषु ये च्वौ च परे। सूयते सूयेते / अशूङ् व्याप्तौ / अश्नुते। . यण के आने पर जन् को 'जा' विकल्प से होता है // 188 // भाव में—यण के आने पर जायते / जन्यते दोनों रूप बन गये। इस प्रकार से दिवादि गण समाप्त हुआ। अथ स्वरादिगण प्रारंभ होता है। षुञ् धातु का अर्थ-स्नपन, पीडन, स्नान और सुरा बनाने अर्थ में है। . . कर्ता में सार्वधातुक के आने पर 'सु आदि गण से 'नु' विकरण होता है // 189 // धात्वादेः ष: स: सूत्र 54 से स होता है पुन: 'नाम्यंतयोर्धातुविकरणयोर्गुणः' ३२वें सूत्र से गुण होकर 'सुनोति, सुनुतः' बना। 'धात्वादेः ष: स:' सूत्र 54 से 'सुनु अन्ति' है। . नु विकरण के उकार को 'वकार' होता है // 190 // पूर्व में संयोग अक्षर के न होने से स्वरादि अगुणी सार्वधातुक के आने पर 'नु' के 'उ' को 'व' हो जाता है। सुन्वन्ति। व, म, विभक्ति के आने पर असंयोग पूर्व के विकरण के उकार का लोप विकल्प से होता है // 191 // सुन्व: सुनुवः / सुन्म: सुनुम: बना। आत्मनेपद में-सुनुते सुन्वाते सुन्वते 'आत्मने चानकारात्' सूत्र से अन्ते के नकार का लोप हो गया। सुनुषे / सुन्वे, सुन्वहे, सुनुवहे / सुन्महे, सुनुमहे / भावकर्म में-सु य ते है___ यण् आय् इन्, आशी, चेक्रीयित, य और च्चि प्रत्यय के आने पर नाम्यंत धातु को दीर्घ हो जाता है // 192 //
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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