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________________ तिङन्त: 221 धुटि हन्तेः सार्वधातुके // 112 // हन्तेरन्तस्य लोपो भवति धुडादावगुणे सार्वधातुके परे / हतः। गमहनजनखनघसामुपधायाः स्वरादावनन्यगुणे // 113 // गमादीनामुपधाया लोपो भवत्यनण्वर्जिते स्वरादावगुणे परे। य च // 114 // ' लुप्तोपधस्य च हन्तेर्हस्य धिर्भवति / मन्ति / हंसि हथ: हथ / हन्मि हन्व: हन्म: / हन्यात् हन्यातां हन्युः / हन्तु हतात् हतां जन्तु / पूर्वोक्तपरोक्तयो: परोक्तो विधिर्बलवान् इति न्यायात् हन्तेजों हो // 115 // हन्तेर्जकारादेशो भवति हौ परे / जहि हतात् हतं हत / हनानि हनाव हनाम / व्यञ्जनादिस्योः // 116 // व्यञ्जनात्परयोर्दिस्योलोंपो भवति / अहन् अहतां अघ्नन् / अहन् अहतं अहत / अहनं अहन्व अहन्म / चक्षङ् व्यक्तायां वाचि। स्कोः संयोगाद्योरन्ते च // 117 // संयोगाद्यो: सकारककारयोलोंपो भवति धुट्यन्ते च। ___हन् ति है 'अन् विकरण: कर्तरि' से अन् होकर 'अदादेग्विकरणस्य' सूत्र 76 से अन् का लुक् होकर 'हन्ति' बना। हन् तस् है। अगुण धुटादि सार्वधातुक के आने पर हन् के अंत नकार का लोप हो जाता है // 112 // .. अत: ‘हत:' बना। हन् अन्ति है। अन् अण् वर्जित स्वरादि अगुणी विभक्ति के आने पर गम् हन् जन खन घस की उपधा का लोप हो जाता है // 113 // अत: हन् की उपधा का लोप होकर 'हन्' रहा। अर्थात् ह के अ का लोप हुआ। - लुप्त उपधा वाले हन् के हकार को 'घ' हो जाता है // 114 // अत-न+अन्ति =न्ति बना / हन सि है 'मनोरनस्वारो धटि सत्र सेन' को अनस्वार होकर हंसि' बना हथ: हेथ / हन्तु / हन् हि है 'पूर्वोक्त और परोक्त नियम में परोक्त विधि बलवान होती है' इस न्याय से 'हि' के आने पर हन् को जकार हो जाता है // 115 // और ज आदेश होने पर हि का लोप नहीं होता अत: जहि बना हतात, हतं हत / हन् दि / हन् सि / व्यंजन से परे दि और सि का लोप हो जाता है // 116 // . 'अहन्' अहतां / हन् अन् है 'गमहन् इत्यादि' सूत्र 113 से हन् की उपधा का लोप होकर ११४वें सूत्र से ह को घ होकर धातु के पूर्व अट् का आगम होकर 'अघ्नन्' बना / चक्षङ् धातु स्पष्ट बोलने अर्थ में है—चक्ष है। संयोग की आदि में यदि सकार या ककार है और धुटि अंत में है तो उन सकार या ककार का लोप हो जाता है // 117 // __ आ चक्ष् ते आचष् ते रहा।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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