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________________ तिङन्त: 219 अस्ते: परयोर्दिस्योरादिरीद्भवति / ___ अस्तेः // 103 // अस्तेरवर्णस्याकारो भवति ह्यस्तन्यादिषु परत: / आसीत् आस्तां आसन् / आसी: आस्तं आस्त। आसम् आस्व आस्म। अस्तेभूरसार्वधातुके // 104 // अस्तेभूरादेशो भवति असार्वधातुके परे / भूयते / रुदिर् अश्रुविमोचने / . रुदादेः सार्वधातुके // 105 // रुदादेः परस्य सार्वधातुकस्य व्यञ्जनादेरयकारादेरादाविडागमो भवति / . नामिनश्शोपधाया लघोः // 106 // सर्वेषां धातूनां उपधाभूतस्य पूर्वस्य लघोर्नामिनो गुणो भवति / रोदिति रुदित: रुदन्ति। रोदिषि रुदिथ: रुदिथ / रोदिमि रुदिव: रुदिमः। . रोदितिः स्वपितिष्चैव श्वसितिः प्राणितिस्तथा। जक्षितिष्ठेति विज्ञेयो रुदादिः पञ्चको गणः // 1 // रुद्यात् रुद्यातां रुद्युः / रोदितु रुदितात् रुदितां रुदन्तु / हौ चेति गुणनिषेध: / रुदिहि रुदितात् रुदितं रुदित / रोदानि रोदाव रोदाम। रुदादिभ्यश्च // 107 // ह्यस्तनी आदि के आने पर अस्ति के आदि को आकार हो जाता है // 103 // अस् ई त्= आसीत्। आसीत् आस्तां आसन् / आसी: आस्तं आस्त / आसम् आस्व आस्म / अस् धातु से भाव में ते विभक्ति यण् आने पर 'अस् य ते' है। . असार्वधातुक में अस् को भू आदेश हो जाता है // 104 // भूयते बना। रुदिर धातु रोने अर्थ में है। 'रूद् ति' है। सार्वधातुक में यकारादि रहित व्यञ्जन आदि वाली विभक्ति के आने पर रुदादि से 'इट्' का आगम हो जाता है // 105 // सभी धातु के नामि लघु उपधा को गुण हो जाता है // 106 // अत: रोद् इ ति = रोदिति रुदित: रुदन्ति बना। रोदिति रुदित: रुदन्ति / रोदिषि रुदिथ: रुदिथ / रोदिमि रुदिव: रुदिमः / श्लोकार्थ–रोदिति, स्वपिति, स्वसिति, प्राणिति और जक्षिति ये पाँच धातुयें रुदादि पञ्चगण से कही जाती हैं // 1 // रुद्यात् / रोदितु / हि के आने पर 'हौ च' सूत्र 90 से गुण का निषेध होने से रुदिहि बना। रुद् दि रुद् सि है। रुद्रादि से परे दि, सि की आदि में 'ई' हो जाता है // 107 // . 1. अस्तेर्भूरगुणे सार्वधातुके -
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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