________________ 216 कातन्त्ररूपमाला सर्वेषां धातूनां विकरणानां च सार्वधातुके आत्मनेपदे परे पञ्चम्युत्तमवर्जिते गुणो न भवति / ब्रूते ब्रुवाते ब्रुवते / ब्रूषे ब्रु वाथे ब्रू ध्वे / बु वे ब्रू वहे ब्रू महे / अद्यात् अद्यातां अधुः / अद्या: अद्यातं अद्यात / अद्यां अद्याव अद्याम। शयीत शयीयातां शयीरन् / शयीथाः शयीयाथां शयीध्वं / शयीय शयीवहि शयीमहि। सप्तम्यां च // 88 // सर्वेषां धातुविकरणानां गुणो न भवति सप्तम्यां च परस्मैपदे परे / ब्रूयात् ब्रू यातां बू युः / ब्रू या . ब्रू यातं ब्रूयात / ब्रूयां ब्रूयाव ब्रूयाम / बुवीत बुवीयातां बुवीरन् / ब्रुवीथा: ब्रुवीयाथां बुवीध्वं / बुवीय ब्रुवीवहि ब्रुवीमहि / अत्तु अत्तात् अत्तां अदन्तु। हुधुड्भ्यां हेधिः // 89 // हुधुड्भ्यां परस्य हेधिर्भवति / अद्धि अत्तात् अत्तं अत्त। अदानि अदाव अदाम। शेतां. शयातां शेरतां / शेष्व शयाथां शेध्वं / शयै शयावहै शयामहै / ब्रवीतु बूतात् बूतां ब्रुवन्तु / हौ च // 10 // सर्वेषां धातूनां गुणो न भवति हौ च परे / ब्रूहि ब्रूतात् ब्रूतं ब्रूत / ब्रवाणि बवाव ब्रवाम / ब्रूतां. बुवातां ब्रुवतां / ब्रूष्व बुवाथां ब्रूध्वं / बवै ब्रवावहै बवामहै / अदोट् // 11 // अद: परयोर्दिस्योरादेरड् भवति / अवर्णस्याकारः // 12 // धातोरादेरवर्णस्याकारो भवति ह्यस्तन्यादिपरत: / आदत् आत्तां आदन् / आद: आत्तं आत्त / आदं आद्व आद्य। अशेत अशयातां अशेरत। अशेथा: अशयाथां अशेध्वं / अशयि अशेवहि अशेमहि / अत: ब्रूते / ब्रू + आते हैं ८३वें सूत्र से ब्रुव् होकर ब्रुवाते ब्रुवते बना। बहुवचन में आत्मने पद में ७९वें सूत्र से नकार का लोप हुआ है। ब्रूते, बुवाते ब्रुवते / ब्रूषे ब्रुवाथे बूध्वे / बुवे ब्रूवहे ब्रूमहे। अद् धातु सप्तमी में-अद्यात् शयीत / सप्तमी के परस्मैपद में सभी धातुओं और विकरण को गुण नहीं होता है // 88 // अत: ब्रूयात् ब्रूयातां ब्रूयुः / आत्मने पद में ब्रू को ब्रुव् होकर ब्रुवीत ब्रुवीयातां ब्रुवीरन् / अद् पंचमी में-अत्तु अत्तां अदन्तु। हु और धुट से परे हि को 'धि' हो जाता है // 89 // अद् धि = अद्धि / 'बु हि' है। ____ 'हि' के आने पर सभी धातुओं को गुण नहीं होता है // 10 // ब्रूहि / बू आनि आव आम / पंचमी के उत्तम पुरुष में गुण होकर बवाणि ब्रवाव बवाम बन गये आत्मने पदे में भी बू, ऐ आवहै आमहै / गुण होकर बवै, ब्रवावहै बवामहै / अद् अ दि, ‘अद् द्' रहा अन् का लुक् हो गया है। अद् से परे दि और सि की आदि में अट का आगम हो जाता है // 91 // धातु के आदि के अवर्ण को आकार हो जाता है // 92 // हास्तनी. अद्यतनी, क्रियातिपत्ति विभक्ति के आने पर। अत: