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________________ जाता है। जितने विवाह अक्ष तृतीया के दिन होते हैं उतने शायद ही अन्य किसी दिन होते हों। और तो और जब से भगवान् का प्रथम आहार इक्षुरस का हुआ तबसे इस क्षेत्र में गन्ना भी अक्षय हो गया, जिधर देखो उधर गन्ना ही गन्ना नजर आता है। सड़क पर गाड़ी में आते-जाते बिना खाये मुँह मीठा हो जाता है। कदम-कदम पर गुड़, शक्कर बनता दिखाई देता है / हस्तिनापुर में आने वाले प्रत्येक यात्री को जम्बूद्वीप प्रवेश द्वार पर भगवान् के आहार के प्रसाद रूप में यहाँ लगभग बारह महीने इक्षुरस पीने को मिलता है। भगवान् शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ के चार-चार कल्याणक भगवान् आदिनाथ के पश्चात् अनेक महापुरुषों का इस पुण्य धरा पर आगमन होता रहा है। भगवान् शान्तिनाथ, कुंथुनाथ एवं अरहनाथ के चार-चार कल्याणक यहाँ हुए हैं। तीनों तीर्थंकर चक्रवर्ती एवं कामदेव पद के धारी भी थे। तीनों तीर्थंकरों ने यहाँ से समस्त छह खण्ड पृथ्वी पर राज्य किया, किन्तु उन्हें शान्ति की प्राप्ति नहीं हुई। छियानवे हजार रानियाँ भी उन्हें सुख प्रदान नहीं कर सकी अतएव उन्होंने संपूर्ण आरम्भ परिग्रह का त्याग कर नग्न दिगम्बर अवस्था धारण की, मुनि बन गये। बारह भावनाओं में पढ़ते हैं कोटि अठारह घोड़े छोड़े चौरासी लख हाथी, इत्यादिक सम्पत्ति बहुतेरी जीरण तृण सम त्यागी। भगवान् शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ ने महान् तपश्चर्या करके यहीं पर दिव्य केवलज्ञान की प्राप्ति की। उनकी ज्ञान ज्योति के प्रकाश से अनेकों भव्य जीवों का मोक्ष मार्ग प्रशस्त हुआ। अन्त में उन्होंने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया। आज हजारों लोग उन तीर्थंकरों की चरण रज से पवित्र इस पुण्य धरा की वन्दना करने आते हैं। उस पुनीत माटी को मस्तक पर चढ़ाते हैं। कौरव-पांडव की राजधानी ___ महाभारत की विश्व विख्यात घटना भगवान् नेमीनाथ के समय में यहाँ घटित हुई। यह वही हस्तिनापुर है जहाँ कौरव-पांडव ने राज्य किया। सौ कौरव भी पाँच पांडवों को हरा नहीं सके। क्या कारण था ? कौरव अनीतिवान थे, अन्यायी थे, अत्याचारी थे, ईर्ष्यालु थे, द्वेषी थे। उनमें अभिमान बाल्यकाल से कूट-कूटकर भरा हुआ था। पांडव प्रारम्भ से धीर-वीर-गम्भीर थे। सत्य आचरण करने वाले थे। न्यायनीति से चलते थे। सहिष्णु थे। इसीलिए पांडवों ने विजय प्राप्त की। यहाँ तक कि पांडव भी सती सीता की तरह अग्नि परीक्षा में सफल हुए। कौरवों के द्वारा बनाये गये जलते हुए लाक्षागृह से भी णमोकार महामन्त्र का स्मरण करते हुए एक सुरंग के रास्ते से बच निकले। ____ वे एक बार पुन: अग्नि परीक्षा में सफल हुए। जब शत्रुजय में नग्न दिगम्बर मुनि अवस्था में ध्यान में लीन थे उस समय दुर्योधन के भानजे कुटुंधर ने लोहे के आभूषण बनवाकर गरम करके पहना दिये। जिसके फलस्वरूप बाहर से उनका शरीर जल रहा था और भीतर से कर्म जल रहे थे। उसी समय सम्पूर्ण कर्म जलकर भस्म हो गये और अन्तकृत केवली बनकर तीन पांडवों ने निर्वाण प्राप्त किया और नकल, सहदेव उपशम श्रेणी का आरोहण करके ग्यारहवें गणस्थान में मरण को प्राप्त क सर्वार्थसिद्धि गये। ____कौरव-पांडव तो आज भी घर-घर में देखने को मिलते हैं। यदि विजय प्राप्त करना है तो पांडवों के मार्ग का अनुसरण करना चाहिये। सदैव न्याय-नीति से चलना चाहिये तभी पांडवों की तरह यश की प्राप्ति होगी। धर्म की सदा जय होती है।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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