________________ 200 कातन्त्ररूपमाला ___ पदान्ते रेफसकारयोर्विसृष्टो भवति / तौ भवतः / तथैव बहुत्व विवक्षायां प्रथमपुरुषबहुवचनं अन्ति। . भू अन्ति इति स्थिते असन्ध्यक्षरयोरस्य तौ तल्लोपश्च // 26 // इह धातुप्रस्तावे अकारसन्ध्यक्षरयोः परतोऽकारस्य अकारसन्ध्यक्षरौ भवतस्तत्परयोर्लोपो भवति / ते भवन्ति / युष्मदि मध्यमः॥ 27 // युष्मदि प्रयुज्यमानेऽप्रयुज्यमानेऽपि मध्यम: पुरुषो भवति / त्वं भवसि / युवां भवथ: यूयं भवथ / ___ अस्मद्युत्तमः // 28 // अस्मदि प्रयुज्यमानेऽप्रयुज्यमानेऽपि उत्तम: पुरुषो भवति। - अस्य वमोर्दीर्घः॥ 29 // अस्य दीपो भवति वमो: परत: / अहं भवामि / आवां भवावः / वयं भवामः / अप्रयुज्यमानेऽपि / भवति, भवतः, भवन्ति / भवसि, भवथ, भवथ / भवामि, भवावः भवामः / भावकर्मविवक्षायां आत्मनेपदानि भावकर्मणोः // 30 // ___ पद के अंत में रकार और सकार का विसर्ग हो जाता है अत: ‘भवत:' बना। तौ भवत:–वे दोनों होते हैं। उसी प्रकार से बहुवचन की विवक्षा में प्रथमपुरुष को बहुवचन 'अन्ति' है। भू अन्ति यह स्थित है। पूर्वोक्त अन् विकरण और गुण करके 'भव् अ अन्ति' है। अकार और संध्यक्षर के परे अकार है उसका लोप हो जाता है // 26 // . यहाँ धातु के प्रस्ताव में अकार और संध्यक्षर के परे रहने पर अकार को अकार और संध्यक्षर हो जाते हैं और इनके परे अकार का लोप हो जाता है। अत: 'भवन्ति' बना। ते भवन्ति–वे होते हैं। युष्मद् में मध्यम पुरुष होता है // 27 // युष्मद् का प्रयोग करने पर अथवा नहीं प्रयोग करने पर भी मध्यम पुरुष होता है। उपर्युक्त विधि के अनुसार सि थस् थ विभक्ति में-त्वं भवसि-तू होता है। युवां भवथ:-तुम दोनों होते हो। यूयं भवथ-तुम सब होते हो। ___अस्मद् में उत्तम पुरुष होता है // 28 // अस्मद् का प्रयोग करने पर या नहीं प्रयोग करने पर भी उत्तम पुरुष होता है। भूमि है अन् विकरण गुण करके 'भव् अ मि' रहा। व, म के आने पर अकार को दीर्घ हो जाता है // 29 // अत: 'भवामि' बना। अहं भवामि-मैं होता हूँ। आवां भवाव:-हम दोनों होते हैं। वयं भवामः-हम सब होते हैं / प्रथम, मध्यम, उत्तम पुरुष के प्रयोग नहीं करने पर भी अर्थ स्पष्ट रहता है। यथा-भवति भवत: भवन्ति, भवसि भवथः भवथ, भवामि भवाव: भवामः। क्रिया में भाव और कर्म की विवक्षा के होने पर भाव, कर्म में 'आत्मनेपद' होता है // 30 //