________________ अथ द्वितीय: संदर्भ: तिङन्तप्रकरणम् सर्वकर्मविनिर्मुक्तं मुक्तिलक्ष्याच वल्लभम् / चन्द्रप्रभजिनं नत्वा तिडन्त: कथ्यते मया // 1 // अथ त्यादयो विभक्तयः प्रदर्श्यन्ते // 1 // ताश्च दशविधा भवन्ति / कास्ता: ? वर्तमाना। सप्तमी। पञ्चमी। शस्तनी। अद्यतनी। परोक्षा। श्वस्तनी। आशी: / भविष्यन्ती। क्रियातिपत्तिरिति / - वर्तमाना // 2 // ति तस् अन्ति / सि थस् थ / मि वस् मस् / ते आते अन्ते / से आथे ध्वे / ए वहे महे—इमानि अष्टादश वचनानि वर्तमानसंज्ञानि भवन्ति। सप्तमी // 3 // यात् यातां युस्, यास् यातं यात, यां याव याम / ईत ईयातां ईरन् / ईथास् ईयाथां ईध्वं, ईय ईवहि ईमहि—इमानि अष्टादश वचनानि सप्तमीसंज्ञानि भवन्ति / पञ्चमी // 4 // तु तां अन्तु, हि तं त, आनि आव आम, तां आतां अन्तां, स्व आथां ध्वं; ऐ आवहै, आमहै—इमानि वचनानि पञ्चमीसंज्ञानि भवन्ति / अथ द्वितीय-सन्दर्भ तिङन्त प्रकरण संपूर्ण कर्मों से रहित और मुक्ति लक्ष्मी के वल्लभ श्री चन्द्रप्रभ भगवान् को नमस्कार करके मैं तिङन्त प्रकरण कहता हूँ // 1 // ___ अथ ति, तस आदि विभक्तियाँ दिखलाते हैं // 1 // विभक्ति के दस भेद हैं वे कौन कौन हैं ? वर्तमाना, सप्तमी, पञ्चमी, ह्यस्तनी, अद्यतनी, परोक्षा, श्वस्तनी, आशी:, भविष्यंती एवं क्रियातिपत्ति ये दस भेद हैं। . वर्तमान काल में 'वर्तमाना' विभक्ति होती हैं // 2 // वर्तमाना के अठारह भेद हैं ति तस् अन्ति, सि थस् थ, मि, वस् मस् / ये नव विभक्तियाँ परस्मैपद संज्ञक हैं / ते आते अन्ते, से आथे ध्वे / ए वहे महे / ये नव विभक्तियाँ आत्मनेपद संज्ञक हैं / ये अठारह वचन 'वर्तमाना' संज्ञक हैं। इसे अन्य व्याकरणों में 'लट्' संज्ञा है। सप्तमी विभक्ति होती है // 3 // यात् यातां युस, यास् यातं यात, यां याव याम / ईत ईयातां ईरन, ईथस् ईयाथां ईध्वम्, ईय ईवहि ईमहि / ये अठारह वचन ‘सप्तमी' संज्ञक हैं। प्रारंभ के नववचन परस्मैपदसंज्ञक एवं अंत में नव वचन आत्मनेपद संज्ञक हैं / (इसको विधिलिङ् कहते हैं।) . पञ्चमी विभक्ति होती है // 4 // तु तां अन्तु, हि तं त, तानि आव आम। तां आतां अन्तां, स्व आथां ध्वं, ऐ आवहै आमहै। ये 'अठारह वचन पञ्चमी संज्ञक होते हैं / (इसे लोट् कहते हैं।)