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________________ 194 कातन्त्ररूपमाला चतुःषष्टिः कला: स्त्रीणां तचतुःसप्ततिर्नृणाम्। आपक: प्रापकस्तासां श्रीमानृषभतीर्थकृत् / / 3 / / तेन ब्राम्यै कुमार्यै च कथितं पाठहेतवे। कालापकं तत्कौमारं नाम्ना शब्दानुशासनम् // 4 // यद्वदन्त्यधिय: केचित् शिखिन: स्कन्दवाहिनः / / पुच्छानिर्गतसूत्रं स्यात्कालापकमतः परम् // 5 // तन्न युक्तं यत: केकी वक्ति प्लुतस्वरानुगम्।। त्रिमात्रं च शिखी ब्रूयादिति प्रामाणिकोक्तित: // 6 // न चात्र मातृकाम्नाये स्वरेषु प्लुतसंग्रहः / तस्मात् श्रीऋषभादिष्टमित्येव प्रतिपद्यताम् // 7 // इति श्रीभावसेनरचितायां कातंत्ररूपमालायां स्यादिनिरूपणं प्रथम: संदर्भ:। स्त्रियों की चौंसठ कलायें होती हैं और पुरुषों की बहत्तर कलायें हैं इन सभी कलाओं को बतलाने वाले प्राप्त कराने वाले श्रीमान् तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान् हैं // 3 // उन ऋषभदेव भगवान् ने ही ब्राह्मी और कुमारी को पढ़ाने के लिए इस व्याकरण को कहा है अतएव यह शब्दानुशासन कालापक और कौमार नाम से भी प्रसिद्ध है // 4 // ____ जो कोई अज्ञानी लोग ऐसा कहते हैं कि स्कंदवाही शिखी के पुच्छ से ये सूत्र निकले हुए हैं अत: इसे 'कालापक' कहते हैं // 5 // आचार्य कहते हैं कि यह बात नहीं है क्योंकि केकी-मयूर प्लुत स्वर का अनुसरण करते हुए बोलता है। वह प्लुत त्रिमात्रिक है और वह मयूर त्रिमात्रिक बोलता है यह बात प्रामाणिक है // 6 // किंतु इस व्याकरण में वर्णसमुदाय में स्वरों में प्लुत का संग्रह नहीं किया है इसलिये यह व्याकरण श्रीऋषभदेव से ही उत्पन्न हुआ है यह बात इष्ट है इस प्रकार से ही स्वीकार करना चाहिये // 7 // भावार्थ-तीसरे श्लोक में कहा है कि स्त्रियों की चौंसठ कलायें और पुरुषों की चौहत्तर कलायें हैं इनको आपक-प्राप्त कराने वाले भगवान् ऋषभदेव हैं। उन्हीं भंगवान् ने अपनी पुत्री ब्राह्मी और सुंदरी इन दोनों को पढ़ाने के लिये यह 'शब्दानुशासन'–व्याकरण कहा है। इसीलिये इसे कला को प्राप्त कराने वाली होने से 'कालापक' और कुमारी-पुत्रियों को पढ़ाने के लिये होने से 'कौमार' ये दो नाम हैं। यहाँ पर यह कलाप व्याकरण या कालापक व्याकरण के नाम की सार्थकता दिखलाई है। इस प्रकार श्री भावसेन विरचित कातंत्ररूपमाला में 'स्यादि' को निरूपित करने वाला प्रथम संदर्भ पूर्ण हुआ।
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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