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________________ 168 कातन्त्ररूपमाला वाणपत्ये // 473 // षष्ठ्यन्तानाम्नोऽण् प्रत्ययो भवति वा अपत्ये अभिधेये / तत्स्थाइत्यादिना विभक्तिलोपः। वृद्धिरादौ सणे // 474 // स्वराणामादिस्वरस्य वृद्धिर्भवति सणकारानुबन्धे तद्धिते परे / का वृद्धिः ? आरुत्तरे च वृद्धिः // 475 // अवर्ण ऋवर्ण इवर्ण उवर्णानामा आर उत्तरे-(ऐ औ) च द्वे सन्ध्यक्षरे वृद्धिसंज्ञा भवन्ति / प्रयोगात्-अवर्णस्य आकारो वृद्धिः / ऋवर्णस्य आर् वृद्धि: / इवर्णस्य एकारस्य च ऐकारो वृद्धिः / उवर्णस्य ओवर्णस्य च औकारो वृद्धिः। उवर्णस्यौत्वमापाद्यं // 476 // उवर्णस्य ओत्वमापादनीयं तद्धिते स्वरे ये च परे। कार्याववावावादेशावोकारौकारयोरपि // 477 // ओकारेऔकारयोरवावौ आदेशौ भवतस्तद्धिते स्वरे ये च परे / काण्टव / भार्गवः / वैदेहः। औपगव: / औपगवौ औपगवा इति। पुरुषशब्दवत् / एवं यास्क: .यास्को। वेद: वेदौ। आङ्गिरस: / कौत्स: / वासिष्ठः / गौतमः / ब्राह्मण: / ऐदम इत्यादि / पञ्चालस्यापत्यं / रूढादण // 478 // षष्ठ्यंत नाम से पुत्र के अर्थ में 'अण्' प्रत्यय विकल्प से होता है // 473 // . कपटु + ङस् “तत्स्था लोप्या विभक्तयः” ४२१वें सूत्र से विभक्ति का लोप होकर कपटु अण् रहा। 'ण' का अनुबंध लोप हो गया। यहाँ अपत्य शब्द पुत्र वाचक है और तीनों लिंग में समान चलता है। सकार णकार अनुबन्ध सहित तद्धित प्रत्यय के आने पर स्वरों में आदि के स्वर को वृद्धि हो जाती है // 474 // वृद्धि किसे कहते हैं ? अवर्ण, ऋवर्ण, इवर्ण, उवर्ण को क्रम से 'आ' आर ऐ औ वृद्धि होती है // 475 // अर्थात् अवर्ण को आकार वृद्धि होती है, ऋवर्ण को आर इवर्ण और एकार को ऐकार, उवर्ण और ओ को औकार वृद्धि होती है। अत: कापटु अ रहा। तद्धित के स्वर और य प्रत्यय के आने पर उवर्ण को 'ओ' हो जाता है // 476 // तद्धित के स्वर और यकार प्रत्यय के आने पर ओ को अव्, औ को आव् करना चाहिये // 4 77 // ___ अत: 'कापटव' लिंग संज्ञा होकर सि विभक्ति आकर 'कापटव:' बना / वैसे ही भृगो: अपत्यंभार्गव:, विदेहस्यापत्यं-वैदेहः, उपगोरपत्यं-औपगवः / आगे ये रूप पुरुष शब्दवत् चलेंगे। एवं यस्कस्य अपत्यं यास्क: वेदस्य अपत्यं वैदः, अंगिरस: अपत्यं आंगिरस: कत्सस्यापत्यं कौत्स: वसिष्ठस्यापत्यं वासिष्ठः, गोतमस्यापत्यं–गौतमः, ब्रह्मण: अपत्यं ब्राह्मण: अस्यापत्यं ऐदमः / अपत्य अर्थ में रूढ शब्द से परे अण् प्रत्यय होता है // 478 //
SR No.004310
Book TitleKatantra Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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