________________ 148 कातन्त्ररूपमाला न निष्ठादिषु // 413 // कर्तृकर्मणोरर्थयोः षष्ठी न भवति निष्ठादिषु परत: / के निष्ठादय: ? क्त। क्तवत् / शन्तृङ् / आनश् / कंस् / कान / किं / उदन्त् / क्त्वा / तुम् / भविष्यदर्थे वुण् / आवश्यकाधमर्म्युयोर्ण्यन् / अव्यय तन इत्येवमादयः / देवदत्तेन भक्तमोदनं / त्वया कृत: कटः / देवदत्त ओदनं भुक्तवान् / देवदत्त: कृतवान् कटं। इत्यादि। कस्मिन्नर्थे सप्तमी ? अधिकरणे। किमधिकरणं ? य आधारस्तदधिकरणम्॥४१४॥ य आधारस्तत्कारकमधिकरणसंज्ञं भवति। स आधारस्त्रिविधः। औपश्लेषिको वैषयिकोऽभिव्यापकश्चेति / कटे आस्ते काकः। औपश्लेषिकोऽयं / करयोः कङ्कणं / दिवि देवाः / वैषयिकोऽयम् / तिलेषु तैलं / अभिव्यापकोऽयं / कालभावयोः सप्तमी // 415 // कालभावयोर्वर्तमानाल्लिङ्गात्सप्तमी भवति। काले-शरदि पुष्यन्ति सप्तच्छदा: / भावे गोषु, दुह्यमानासु गतः। अधिशीङ्स्थासां कर्म // 416 // निष्ठा आदि प्रत्यय के आने पर कर्ता कर्म अर्थ में षष्ठी नहीं होती है // 413 // निष्ठादि से क्या-क्या लेना ? क्त, क्तवत्, शन्तृङ् आनश् क्वंस्, कान् किं, कंस् / उदन्त, उक क्त्वा, तुम् / भविष्यत् अर्थ में वुण् / आवश्यक और अधमर्ण में ण्यन् / ये प्रत्यय कृदन्त में पाये जाते हैं और अव्यय तृन् ये इत्यादि निष्ठादि कहलाते हैं। जैसे—देवदत्तेन भुक्तमोदनं-देवदत्त ने भात खाया। त्वया कटः कृत:-तुमने चटाई बनाई। देवदत्त: ओदनं भुक्तवान्–देवदत्त ने भात खाया। देवदत्त: कटं कृतवान्–देवदत्त ने चटाई बनाई। इत्यादि। किस अर्थ में सप्तमी होती है ? अधिकरण अर्थ में सप्तमी होती है। अधिकरण क्या है ? जो आधार है उस कारक को अधिकरण कहते हैं // 414 // वह आधार तीन प्रकार का है। औपश्लेषिक, वैषयिक और अभिव्यापक / औपश्लेषिक का उदाहरण—कटे आस्ते काक:-चटाई पर कौआ बैठा है। वैषयिक में करयो: कंकणं-दोनों हाथ में कड़े हैं। दिवि देवा:-स्वर्ग में देवता हैं। अभिव्यापक में-तिलेषु तैलं-तिलों में तेल रहता है। - काल और भाव में वर्तमान लिंग से सप्तमी होती है // 415 // . काल में-शरदि पुष्यंति सप्तच्छदा:-शरद् ऋतु में सप्तच्छद फूलते हैं। भाव में-गोषु दुह्यमानासु गत:-गाय के दुहने वाले समय में गया। अधि पूर्वक शीङ् स्था और आस् धातु के प्रयोग में अधिकरण अर्थ में द्वितीया होती है // 416 // ग्रामम् अधिशेते गाँव में सोता है। 1. आध्रियन्ते क्रिया यस्मिन्नित्याधारः।