________________ कारकाणि 141 मन्यकर्मणि चानादरेऽप्राणिनि // 387 // प्राणिगणवर्जिते मन्यते: कर्मणि द्वितीयाचतुौँ भवत: अनादरे गम्यमाने / न त्वां तृणं मन्ये, न त्वां तृणाय मन्ये / न त्वां बुषं मन्ये, न त्वां बुषाय मन्ये / इत्यादि / अनादरे इति किं ? अश्मानं दृषदं मन्ये / पाषाणं रत्नं मन्ये / अप्राणिनीति किं ? न त्वां नावं मन्ये / न त्वामनं मन्ये / न त्वां काकं मन्ये / न त्वां शुकं मन्ये / न त्वां शृगालं मन्ये / नौ अन्न काक शुक शृगाला एते प्राणिनो वैयाकरणजनानां / इह स्यादेव-न त्वां श्वानं मन्ये, न त्वां शूने मन्ये। कस्मिन्नर्थे तृतीया ? करणे तृतीया। किं करणं ? - येन क्रियते तत्करणम्॥३८८॥ येन क्रियते तत्कारकं करणसंज्ञं भवति / दात्रेण लुनाति / कराभ्यां हन्ति / वाणैर्विध्यति / दिवः कर्म च // 389 // दिवधातो: प्रयोगे करणे द्वितीया भवति / अक्षान् दीव्यति / अक्षैर्दीव्यतीत्यर्थः / तृतीया सहयोगे // 390 // सहार्थेन योगे लिङ्गातृतीया भवति / पुत्रेण सह आगत: / त्यागसत्ताभ्यां सार्धं विराजते / सौर्यगुणैः साकमेधते यशः / इत्यादि। __ प्राणीगण से वर्जित अनादर अर्थ में मन्य धातु के योग से कर्म अर्थ में द्वितीया और चतुर्थी दोनों हो जाते हैं // 387 // जैसे-न त्वां तृणं मन्ये, न त्वां तृणाय मन्ये—मैं तुमको तृण भी नहीं समझता हूँ। इत्यादि / अनादर अर्थ क्यों कहा ? जैसे 'अश्मानं दृषदं मन्ये'-पाषाणं रत्नं मन्ये-मैं पत्थर को रत्न समझता हूँ। यहाँ अनादर अर्थ न होने से चतुर्थी नहीं हुई। 'प्राणीगण को छोड़कर' ऐसा क्यों कहा ? न त्वां नावं मन्ये-मैं तुमको नाव नहीं मानता हूँ। प्राणीगण में कितने शब्द आते हैं ? नौ अन्न, काक, शुक और शृगाल वैयाकरणों के यहाँ इन पाँच को प्राणीगण से लिया है। मतलब इनके योग में मन्य धातु के प्रयोग में चतुर्थी न होकर द्वितीया ही रहती है। . किस अर्थ में तृतीया होती है ? करण अर्थ में तृतीया होती है / करण किसे कहते हैं ? - जिसके द्वारा क्रिया की जाय वह करण है // 388 // जिसके द्वारा क्रिया की जाती है वह कारक करण संज्ञक कहलाता है। यथा-दात्रेण लुनाति-दांतिया से काटता है। ___ कराभ्याम् हंति—दोनों हाथों से मारता है। वाणैर्विध्यति–वाणों से वेधन करता है। दिवधातु के योग में करण अर्थ में द्वितीया हो जाती है // 389 // . इस सूत्र में च शब्द है अत: सूत्र का अर्थ दिवधातु के योग में द्वितीया और तृतीया दोनों होती है ऐसा अर्थ होना चाहिए। यथा—अक्षान् दीव्यति—पाशों से खेलता है। इसमें द्वितीया विभक्ति होकर भी अर्थ तृतीया का ही निकलता है। सह अर्थ के योग में ततीया होती है // 390 // सह के पर्यायवाचक जो शब्द उनके योग में तृतीया होती है ऐसा अर्थ है अत: समम् सार्धम् के योग में भी तृतीया होती है बन्धुना सार्धम् गच्छति / यथा-पुत्रेण सह आगत:-पुत्र के साथ आया। * त्याग सत्ताभ्याम् सार्धं विराजते-वह त्याग और सत्ता से शोभित होता है।