________________ व्यञ्जनान्तेष्वलिङ्गाः 133 वीरो विश्वेश्वरो देवो युष्माकं कुलदेवता। स एव नाथो भगवानस्माकं पापनाशनः // 1 // भगवानीश्वरो भूयाधुष्माकं वरदः प्रभुः / सद्यो निराकृता दूरमस्माकं येन विद्विषः / / 2 / / पादादाविति किं ? पान्तु व: पार्वतीनाथमौलिचन्द्रमरीचयः / आमन्त्रणात् / / 364 // आमन्त्रणात्परं युष्मदादीनां पदमेतानादेशान्न प्राप्नोति / हे पुत्र तव स्वमिदं / हे पुत्र मम स्वमिदं / हे पुत्र त्वां रक्षति। -- चादियोगे च // 365 // चादीनां योगे युष्मदादीनां पदमेतानादेशान्न प्राप्नोति / पुत्रो युष्माकं च / पुत्रोऽस्माकं च। पुत्रो युष्मभ्यं च दीयते / पुत्रोऽस्मभ्यं च दीयते / पुत्रो युष्मांश्च रक्षति / पत्रोऽस्मांश्च रक्षति / चादय: कति ? पञ्च / ते के ? च वा ह अह एव इति चादयः / दृश्याथैश्वानालोचने // 366 // अचक्षुरालोचने वर्तमानैदृश्यार्थैर्धातुभियोंगे युष्मदस्मत्त्वन्मदादीनां वस्नसादयो न भवन्ति / अनालोचनमिति किम् ? आलोचनं चक्षुर्ज्ञानमनालोचनं मनसा ज्ञानं / ग्रामस्त्वां समीक्षते। ग्रामो मां श्लोकार्थ विश्व के ईश्वर वीर भगवान् तुम लोगों के कुल देवता हैं। वे ही भगवान् नाथ हैं ; हम लोगों के पाप का नाश करने वाले हैं // 1 // भगवान् ईश्वर तुम लोगों के लिये वर देने में समर्थ होवें, जिन्होंने तत्काल ही हम लोगों के लिये शत्रुओं को दूर कर दिया है // 2 // प्रश्न-पाद की आदि में ये आदेश नहीं होंगे; ऐसा क्यों कहा? उत्तर–पांतु व: पार्वतीनाथ, मौलिचन्द्र मरीचयः / इस श्लोक में 'व:' आदेश प्रथम पाद की आदि में न होकर आदि में पांतु पद है; अत: यहाँ आदेश हो गया। __ आमंत्रण से परे भी युष्मद् अस्मद् के पद को उपर्युक्त आदेश नहीं होते हैं // 364 // यथा-हे पुत्र ! तव स्वं इदं-हे पुत्र ! तुम्हारा यह धन है। इसमें संबोधन से परे ‘तव' को 'ते' नहीं हुआ ऐसे ही आगे सभी के उदाहरण समझ लेना चाहिये। 'च' आदि के योग में भी आदेश नहीं होता है // 365 // 'च' आदि के योग में युष्मद् अस्मद् के पद को उपर्युक्त आदेश नहीं होता है। जैसे—पुत्रो युष्माकं च-और तुम लोगों का पुत्र है। आगे सभी के उदाहरण समझ लीजिये।। ___चादि शब्द में आदि से कितने लेना ? पाँच लेना। वे कौन हैं ? च, वा, ह, अह और एव पाँच शब्द 'चादि' से लिये गये हैं। इनके योग में स् व: न: आदि आदेश नहीं होते हैं। अचक्षु से देखने अर्थ में दृश्य अर्थ वाले धातु के योग में उपर्युक्त आदेश नहीं होते हैं // 366 // 6. यदि देखने अर्थ वाली धातुओं का अर्थ चक्षु से नहीं देखने अर्थ में विद्यमान हो तो देखने अर्थ वाली धातुओं के योग में युष्मद् अस्मद् को वस् नस् आदि आदेश नहीं होते हैं। प्रश्न-सूत्र में अनालोचन पद क्यों है ? चक्षु के ज्ञान को यहाँ आलोचन' शब्द से कहा है और मन से होने वाले ज्ञान को 'अनालोचन' शब्द से कहा है / जैसे ग्रामस्त्वां समीक्षते-गाँव तुमको देख रहा है।