________________ 132 कातन्त्ररूपमाला वाम्नौ द्वित्वे // 361 // पदात्परं युष्मदस्मदोः पदं षष्ठीचतुर्थीद्वितीयासु द्वित्वे निष्पन्नं वाम्नौ आपद्यते यथासंख्यं / ग्रामो वां स्वं / ग्रामो नौ स्वं / ग्रामो वां दीयते / ग्रामो नौ दीयते / ग्रामो वां रक्षति / ग्रामो नौ रक्षति / ग्रामस्तव स्वं / ग्रामो मम स्वं / ग्रामस्तुभ्यं दीयते / ग्रामो मह्यं दीयते / ग्रामस्त्वां रक्षति / ग्रामो मां रक्षति / इति स्थिते त्वन्मदोरेकत्वे ते मे त्वा मा तु द्वितीयायां // 362 // युष्मदस्मदोरेकत्वे त्वन्मदीभूतयोः पदं पदात्परं षष्ठीचतुर्थीद्वितीयासु एकत्वे निष्पन्नं ते मे आपद्यते त्वा मा तु द्वितीयायां / ग्रामस्ते स्वं / ग्रामो मे स्वं / ग्रामस्ते दीयते / ग्रामो मे दीयते / ग्रामस्त्वा रक्षति / ग्रामो मा रक्षति / इति सिद्धं / न पादादौ // 363 // पादस्यादौ वर्तमानानां युष्मदादीनां पदमेतानादेशान्न प्राप्नोति / अब इन्हीं षष्ठी, चतुर्थी और द्वितीया के द्विवचन के आदेश को दिखायेंगे / यथा—ग्राम: युवयो: स्वं-गाँव तुम दोनों का धन है। ग्राम आवयोः स्वं-गाँव हम लोगों का धन है। ग्रामो युवाभ्यां दीयते-गाँव तुम दोनों को दिया जाता है। ग्राम आवाभ्यां दीयते-गाँव हम दोनों को दिया जाता है / ग्रामो युवां रक्षति-गाँव तुम दोनों की रक्षा करता है / ग्राम आवां रक्षति-गाँव हम दो की रक्षा करता है। .. द्विवचन में 'वाम् नौ' आदेश हो जाता है // 361 // पद से परे षष्ठी, चतुर्थी और द्वितीया के द्विवचन में निष्पन्न युष्मद् पद को 'वाम्' और अस्मद् को 'नौ' आदेश हो जाता है। अब आदेश हुए पदों का उदाहरण देखिये। ग्रामो वां स्वं— गाँव तुम दोनों का धन है। ग्रामो नौ स्वं-गाँव हम दोनों का धन है / ग्रामो वां दीयते-गाँव तुम दोनों को दिया जाता है। ग्रामो नौ दीयते-गाँव हम दोनों को दिया जाता है। ग्रामो वां रक्षति-गाँव तुम दो की रक्षा करता है। ग्रामो नौ रक्षति-गाँव हम दोनों की रक्षा करता है। अब षष्ठी, चतुर्थी और द्वितीया के एकवचन के आदेश को देखिये। ___ पद से परे षष्ठी, चतुर्थी के एकवचन में युष्मद् को 'ते' और अस्मद् को 'मे' तथा द्वितीया के एकवचन में 'त्वा', 'मा' आदेश होता है // 362 // ___ यथा—ग्रामस्तव स्वं-ग्रामस्ते स्वं, ग्रामो मम स्वं-ग्रामो मे स्वं / ग्रामस्तुभ्यं दीयते—ग्रामो ते दीयते / ग्रामो मां दीयते-ग्रामो मे दीयते / ग्रामस्त्वां रक्षति-ग्रामस्त्वा रक्षति / ग्रामो मां रक्षति ग्रामो मा रक्षति। इस प्रकार से ये उपर्युक्त आदेश सिद्ध हो गये। ___पाद की आदि में ये आदेश नहीं होते हैं // 363 // श्लोकों के पाद की आदि में वर्तमान युष्मद्, अस्मद् को ये उपर्युक्त आदेश प्राप्त नहीं होते हैं। यथा वीरों विश्वेश्वरो देवो, युष्माकं कुलदेवता / यहाँ 'युष्माकं' पद द्वितीय पाद की आदि में है। अत: इसे व: आदेश नहीं हुआ। उसी प्रकार से स एव नाथो भगवान् / अस्माकं पापनाशनः // यहाँ ‘अस्माकं' पद चतुर्थ पाद की आदि में है। अत: उसे 'न:' आदेश नहीं होगा। उसी प्रकार से आगे के श्लोक में द्वितीय चरण की आदि में युष्माकं को 'व:' एवं चतुर्थ चरण की आदि में अस्माकं को 'न:' नहीं हुआ।